जादूगर कबीर | Jadugar Kabir
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.42 MB
कुल पष्ठ :
179
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जादूगर कवीर १
नही जान सकते । कवीर चाचा श्रा जाएंगे, तो क्या कहेंगे ?
लता पीछे हट गई, पर उसकी श्राँखिं रह-रहकर उस
जादुई शबंत्त पर ठहर जाती थी । खिडकी के पास एक सोफा
रखा था । दिलीप उस पर चढकर वाहर देखने लगा । उसका
ध्यान वाहर था, इस मौके का लाभ उठाकर लता ने फिर उस
प्याले का ढक्कन खोला । अहा; कितना सुन्दर रग '. कितनी
मस्त सुगन्ध ! ऐसा पदार्थ भला कभी जहर हो सकता है ?
कबीर चाचा ने शायद हमारे लिए ही यह दवेत बनाया है ।
श्रब् लता भ्पना लालच न रोक सकी । उसने एक घूंट पिया
श्रौर वोल उठी--“श्हा-हा, भैया, कितना मीठा दंत है 1”
दिलीप ने चौककर पीछे देखा । वह बोला--'ऐं ! तूने
शवंत पी लिया * भ्ररे, वाप रे ! मर जाएगी तो ?”'
लता हँस पडी--भैया । यह तो मजेदार दावत है ।
इतना झ्रच्छा शबंत मैंने राज तक नहीं चखा । भ्रह्मा ! कितना
अच्छा है !
दिलीप भी ललचाया । वोला--“'सचमुच ?”
लता ने कहा--“तू भी एक घूंट चखकर देख ले 1”
“कवीर चाचा झ्राएँगे तो क्या कहेंगे ?”
“कवीर चाचा ने जरूर यह शवंत हमारे लिए ही
वनाया है ।””
भव दिलीप भी झ्रपना लालच न रोक सका । उसने भी
एक घूंट पिया झ्ौर कहा--“अहा ! कितना श्रच्छा है 1”
फिर दोनो सोफे पर चढे श्रौर खिडकी से बाहर देखने
लगे । लता खिड़की से नीचे देखकर वोली--“भ्रोह ! कितनी
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