शिवाजी विजय | Shivaji Vijay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.78 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवनप्रभात । (१७)
होकर सन् १५६४ ईं०में तेलीकोंट वा रक्षित गण्डीके युद्ध विजयनगरकी
सेनाकों शिकस्त दे उस हिन्दूराज्यकी नींव उखाड दी । दक्षिण हिन्दूस्ाधी-
नता एकप्रकार छोप होगई और विजयपुर गठखन्द व अहमदनगर यह तीन
मुसठमान राज्य अतिप्रवछ पराक्रमी होगये । क्णीटक और द्वाविडके हिन्दू
राज्यगणमी सहज सहज विजयपुर और गठखन्दके अधीन होगये ।
सन् १९८० ई० में बादशाह अकबरने फिर समस्त दक्षिण देगकों दिल्लीके
अवीन करनेकी चेष्टा की और उसकी सृत्युसे पहलेद्दी समस्त खानदेश
और अहमदनार राज्यका अधिकाण दिल्लीकी सेनाके अधिकारमे आगया । उस
को पोते दाहजहाने सन् १६९६ ई० के बीचमें अहमदनगरके समस्त राज्यकों
अपने अधिकारमे कर ठिया, बस जिस संमयका इृत्तान्त हम ठिखने बैठे है उस
समय दक्षिण देशमे केवल विजयपूर और गलखन्द यह ढो. पराक्रेमी स्वाघीन
मुसलमान राज्य थे ।
इस समत्त गडवडकें मध्यम देशी ढोगाकी अथात् महाराष्ट्रीय पक्षी
अवस्था कैसी थी यह हम ठोगोकी अवश्य जानना उचित है। मुसठमान राज्यके
अधीन अयोत् प्रथम -दौठताबादके और फिर अहमदनगर विजयपुर और
गठखन्दके अर्घीनमें हिन्दुओकी अवस्था महाद्दीन नहीं थी । बरन मुस॒ठमानोके
देश शासन-कार्य अधिकतासे महारा्ट्रियोकेही वुद्धिछसे चछतेथे । प्रत्येक
राज्यमें कई एक सकोर ओर प्रत्येक सकौर कुछ परणनेंमि विभक्त होती थीं
और उन समस्त सकार और परणनोंमें कर्भा कर्भा मुसलमान हाकिम नियुक्त
होते पर्तु अधिकतासे मरहटे का्दे छोगही महदसूढ वसूठ करके खजानेपें
भेजते थे । महाराष्ट्र देदमे पर्वत अधिकतास है भर उस समय इन पर्वतोपर
अगणित किढे वने हुए थे । मुसलमान बादशाह वह सब पहाड़ी किले महारा-
छ्रियोंकि हाथ सौप देनेसे छुछ भीत नहीं होते थे किठेदार कभी ९ राजको-
पसे वेतन पाते और कभी किलेकी भूमि जो उनको जागीरमें मिठती थी उसकी
हा आमदर्नासे दुगरक्षाके अथे आवश्यकीय व्यय करते थे । इन समस्त किछें-
दारोंके सिवाय मुसठमान बादशाहोंके अधिनमें अनेक हिन्दू मनसबदार थे, यह
छोग सौ, या दौसो, या पाचसा, या हजार अथवा इससे अधिक सवार सेवा
न
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