प्रेमपत्र राधास्वामी दूसरी जिल्द | Prempatra Radhaswami Dusari Jild

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Prempatra Radhaswami Dusari Jild by राधास्वामी ट्रस्ट - Radhaswami Trust

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हसननननणतयतयएएएशएलएएएलललपलशएएएनएएललए'लबटटएएएएलटवटटटटएलएलटटएए'एएएएटएटटटविटएपपटटट-2एएटटएटटटलपणणएनटकीआणणटट वचन ३ प्रेमेपत्रे दांधास्त्रासमी लिट्द ९ थ भर जिस वक्त आमभ्यास करें, उस वक्त तो जरूर इस कदर होशियारी रक्‍खें, कि दुनिया के रूयाल उनके मन में जहाँ तक मुमकिन होवे न. आबें, और जो बगैर इरादा के ऐसे .ख्याल उठें, तो उनको जिस क़दर जलूदी मुमकिन होबे हटा देवें ॥ _ र-सतसगी को चाहिये कि श्पने कुटुम्ब परिवार के संग प्रीति भाव के साथ बरताव करे, और जिसका जो हृक्क़ होवे, जहां तक मुमकिन होने उसको अदा करे । जो कुदुम्बी इसके साथ सच्चे परमाथ में शामिल हो जावें तो बहुत अच्छा, नहीं तो एक दो या तीन मरतबा इसको चाहिये कि उनको राधास्वामी मत की .बड़ाइ और उसके अभ्यास का फ़ायदा खोलकर समभ्दावे--जो यह. बात उनकी समभ्द्त में आजावे और वे अपनी राजी से जिस क़दर शामिल होवें उनको अपने साथ परमाथे में लगा लेने, और ज़ो वे. देकी या करमी उ्तैर: भरमी होतें और संतों के बचन को न मानें और मेष जर पण्ड़ितों की चाल के . मुवा- फिक .झपना बरतातव्र जारी रक्खें, तो राधास्वामी मत के उभ्यासी को चाहिये कि उनके साथ जिद्ठ और दावत न करे, उनको उनके हाल पर छोड़ देवे और दुनिया का व्योहार उ्के साथ बदस्तूर बतंता रहे ॥ ता का की कक मल न




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