नारी रोगांक | Nari Rogank

Nari Rogank by वैद्य देवीशरण गर्ग - Vaidh Devisharan Garag

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कक ः आयुवद के उत्तमात्तस पठनांय अन्थ _ प्रत्येक श्रन्थ॑ उच्च कोटि के. विद्वोनों द्वारा संपादित हैं । बेद्यों तथा चिकित्सक समुदाय को चाहिए कि इन ग्रन्थों की एक एक श्रति मंगवा कर अवकाश के समय उनका अध्ययन.कर अपने ज्ञान की उत्तरोत्तर वृद्धि करते हुए अपने चिकित्सा व्यवसाय में भी पूर्ण उन्नति कर यश तथा धन के भागी बने। प्रत्येक श्रन्थ पर भारत के सर्मज्ञ विशिष्ट विद्वानों पत्र-पत्रिकाओं तथा शिक्षण संस्थाओं द्वारा अनेकानेक उत्तम उत्तम सम्मतियाँ +मी प्राप्त हुई हैं । --सम्पादक १. अगदतत्र--डा० रमानाथ द्विवेदी एम. ए. ए. एम. एस. । इस छोटी सी पुस्तिका में लेखक ने विस्तृत ज्ञान भर . दिया है । चं्यों तथा विद्यार्थियों के लिए पठनीय पुस्तक है । सब कालेजों के कोस में ०-७५ २ अज्जन निदानम्‌--सान्वय विद्योतनी हिन्दी टीका सदित । आयुर्वेद शाख्र में निदान के लिए श्रेष्ठ ग्रव्थ है । शै-०० २ अभिनव दूठी दूपण--( सचित्र ) सम्पादक वनरपति विशेषज्ञ श्री रुपलालजी वेश्य । सहज में पहचानने योग्य. अनेकानेक चित्रों से विभूषित । चनस्पतियों से चिकित्सा का सर्वोत्तम श्रन्थ । १६-०० ४ अभिनव विछृति विज्ञान--( सचित्र ) थ्रायुर्वेदाचाय श्रीरघुवीर प्रसाद त्रिवेदी । २२-०० ५ अभिनव्र शरीर क्रिया विज्ञान--( सचित्र ) ्ाचाये प्रियत्रत शर्मा एस. ए- ए.एम. एस. । इस चिपय की कोई ऐसी पुरुतक हिन्दी में नहीं थी जिसमें श्याधुनिक शरीर क्रियाचिज्ञान के सम्पूर्ण विषयों का चंज्ञानिक शैली से संकछन किया गया _ हो । प्रस्तुत पुस्तक इस विषय की सर्वोत्तम पुस्तक दै। विद्यार्थियों के लिए तो वहुत ही उपयोगी संस्करण है। ७-५० द अशड्संत्रह--टीकाकार श्यायुवेंद चहस्पति श्री गोवर्धन शर्मा छांगाणी । छांगाणी जी की विद्वत्ता झायुर्वद जगत में प्रसिद्ध है । अतः उनकी टीका तो सर्वोत्तम होनी ही है । टीका के साथ-साथ विशेष चक्तच्य में छांगाणी जी ने स्वानुभूत योगों का भी प्रायः उल्लेख कर दिया है। . सूचस्थान ८-०० ० अछाज्हदयमू--( गुटका ) शागीरथी टिप्पणी सहित 1. _ छ-०० अ्रज्ञहदयम्‌--वियोतिनी हिन्दी टीका विमशें सहित टीकाकार -श्री झत्रिदेवयुप्त विद्यालक्वार । सर्वाज्सुन्दरी घ्यायुर्वेद रसायन तत्ववोध पदाथचन्दिका झादि टीकाओं के ाधार पर इस सुविस्तृत टीका की रचना की गई है। आचौय चेद्य यदुनन्दन उपाध्याय द्वारा संशोधित परिवर्द्धित सटिप्पण द्वितीय संस्करण । १४-०० ९ आयुर्वेद चिज्ञान--विद्योतिनी हिन्दी टीका परिशिष्ट सहित । ५० १० आयुर्वेदीय परिभाषा--+गिरिजादयालु शुक्क ए. एम. एस. श्रमिनव अकाशिका हिन्दी टीका परिशिष्ट सहित र-२७ . ११ आसवारिपसंश्रहः--झासव-झरिष्ट की सर्वोत्तम पुस्तक । १-७५ १९ औपसर्मिक रोग--डा० घारोकर । इस नई श्राइत्ति में अनेक .नये रोग समाविष्ट किये गए हैं.। विषयों तथा रोसं का विवरण तथा प्रतिपादन बहुत अधिक विस्तार के साथ किया गया हैं। प्रथम भाग ०-०० १३ काय-चिकित्सा--झायुर्वेदाचायं गज्ा सहाय पाण्डेय ए. एम. एस. । ी शीघ्र प्रकाशित होगी 1 . १४ काशइ्यप सहिता--श्री सत्वपाल आयुर्वदालंकार कृत विद्योततनी हिन्दी टीका एवं राजगुरु हेमराज जी कृत संस्कृत-दहिन्दी - विस्तृत उपोद्धात सहित। इस ग्रन्थ की आमाणिकता चरक तथा सुशुत के सपान हैं । थायुचेद में कोमारभत्य चिपयक ..... यही एक मात्र प्राचीन अन्थ है । शायुर्वेद विद्वानों एवं चिकित्सकों के लिए संग्रहणीय एवं पठनीय हैं । १६-०० १५ कौंमारझृत्य ( नब्य बालरोग सहित )--श्राचाये रघुवीरप्रसाद त्रिवेदी ए. एम. एस. । समस्त.वाल रोगों पर प्राव्य-पाश्चात्यचिकित्सा विज्ञान पर श्माधारित सर्वाज्नपूण एवं विशाल ग्रन्थ । पाठ्य-स्वीकृत प्रन्थ 00 _ १६ क्लाथमणिमाला--हिन्दी टीका सहित । ओआयुर्वेद के विभिन्न ग्रन्थों सें उपलब्ध समस्त क्वार्थो का परिश्रम पूरवेक संग्रह. ... किया.गया है। प्राकृत चिकित्सक तथा केवल काठ ौपधियों द्वारा चिकित्सा करने वालों के लिए उत्तम पुस्तक शूनणु० १७ गूलर सुण विकास--वेधभूपण श्री चन्द्रशेखरघर मिश्र लिखित यूलर के विविध चमत्कारिक गुर्णों के .चर्णन युक्त ८... झनुपम पुस्तक जिसकी पशंसा भारत के राष्ट्रपति श्री राजेन्द्रप्रसाद जी ने मी की है । १९ चां संस्करण . ईू-०० १८ चरक.सचिता--मूल । सागीरथी टिप्पणी सहित । गुटका संस्करण 1 ्ि ेटयक १९ चंक्रदत--नंदीन वैज्ञानिक शादाथसन्दीपनी साषाटीका एवं विविध परिशिष्ट सहित 1 .. ... ०-09




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