कबीर साहेब के अनुराग सागर | Kabir Saheb Ka Anurag Sager
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.77 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।
वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।
कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी ह
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अतराग सागर
धर्म के उदर माई है. नारी । से
ददर फारि के... बाहर. झादे। झूम
धरम राय सो कद्दो .. थिलोई। बे
जोग जीत चल थे सिर नाई। मान
जोग जीत कह देखा... जत्रद्दी । अतहिं
पूछे काल कौन... तुम ओाई। कौन
जोग नीत श्र कहें. पुकारीं । अद्दो
आज्ञा पुरुस् दीन्द यह मोदी । इहिं
जोंग जीत कन्या. से क्ष्टिया । सारी
उद्र फारि अर श्वहू बाहर । पुरुस
यहि कि जोग करे सो... ध्याना । पुरुत
सुनि के धर्म क्रोध उर जरेऊ। जोग जीत सो सन्मुख
॥ छद् ॥।
गहि भुना फटकार दीन्दों .. परेउ
भये। त्रसित. पर्स टरते
पुरुस श्ाज्ा ते भयी
पुनि निकसि कन्या उदर
श्दे
कहिये निन सत्द सम्ददारी !।
उदर विंदारि फल पाते
नारि अत तुम्हरी होई॥
सरोबर. पहुँचे... जाई ॥
भो काल भयंकर तवही ॥
कान तुम यहाँ सिंधाई ॥
धर्म तुम झसेह नारी ॥।
ते बेगिं निकारों तोही ॥।
काहे उदर पह. रहिया ॥
तेजि .... सुमिरों तेहिं ठादर ॥
प्रभाव तेन उर आना ॥
मिरेऊ ॥
लोक तें न्यार सो ॥।
बहुरि उठेड सम्ददार सा ॥।
तेहि. मारो माकक लिलार हो ॥।
ते झर्ति दरत देखे घरम हो ॥
सोरठा-कामिनी रदी.... संकाय; त्रसित काल के ठुर झधिक ॥
रही सो सीस नवाय, आसपास चितवत खड़ी ॥।
॥ चौपाई ॥।
कहें धरम सुनु ... झादि कुमारी | श्रव जनि.... दरपो त्रास इमारी
परुस रचा तोहिं हमरे
हम हैं परस तमदि हो
कन्या कहे. सुनो
झर में पुत्री भई
तुम ते. झद्दो
मंद दृष्टि जनि
कहे... निरंजन सुनो
पाप पन्य डर इम नहदि' डरता ! पाप
पाप पुन्य. हमदी
पाप. पन्य इस कर पसारा ! जे!
तातें तोहि कहे
पूरुष्ठ दीन्ड तह हम कह जानी । मानहु
हमारे ताता । जेठ
काम । इक मति दहोय कर
नारी । अब जनि
हो ताता । ऐसी चिधि जनि
तुम्द्दारी । नव से उदर मांभक लिये डारी ॥
चित्वहू माही । नातो पाप
भवानी । यह मैं , तोदि
से हाई । लेखा मार न
समुभाई । सिख हमार लो
उपराजा ॥
ढरप। न्रास हमारी ॥।
वोलहू बाता |
चंघु प्रयमहिं
हाय
कटे
पन्य के इमहीं
उन
हाय
सीस
हमार
के. नाता ॥।
अरब तोही ॥
सदिदानी ॥
करता ॥।
कोई ॥
हमारा ॥
चद्दाइ ॥
भवानी ॥
वाभे से
कहा
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