कबीर साहेब की शब्दावली भाग 4 | Kabir Sahab Ki Shbdawali Part4

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Kabir Sahab Ki Shbdawali Part4 by गोस्वामी तुलसीदास - Goswami Tulsidas

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कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।

वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।

कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी ह

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शाण मंगल... & अंग हसा चमक सेभा , सुर सेारह.पावहीं । घन सतगरू का सार बोरा , पष दरस दिखावहीं हंस सृजन जन उंस भें , हंस के पहुिचानि है । कहें कबीरसेा हंस पहुँचे , जा सस नामहि जानि है: ( है ) [ बेदी | लगन लगी सत लाक , सुक़त सन भाव ड़ों । सुफड़ सनारथ हाथ ता मंगल गावही ॥१॥ चल सखि सरति संजाय , अगम घर उदठि चढी.7 हंस सरूप सेंवारि , परुष साँ तुम मिले +९॥ - कनक पत्र पर उऊंक , अनूपसम आते किया + तमहिं सकल संडेस , जगन पिय लिख दिये । लिखि दिया सब्द अमोज , साहंग सुहाबना । पुरन. परम-निधान , ताहि बल जम जिता ॥9॥. . तत करनी कर तेल , हरदि हित .लाबडी । कंकन नेह बंघाय , मधर घन गावही 0 “. च्छत थार अराय , ता चैक परावहों । हीरा हंस बिठाय , ता सब्द सनावही ॥६॥ कंचन खंप उजार , अघर चारे जगा । बाजत अनहद तूर , सेव मंडप छजा ॥०1 खगर अमो भरि कम्म्र , रतन देरी रचा । डर _ हंस पढ़ें तहँ सब्द , मुक्ति बेदी रो ॥८॥। गे हस्त लिये सत केल , ज्ञान गढ़ बंघना । माच्छ सरुूपी मार , सीस सुन्दर बना ॥९।. 'लमललरलतवंड रू कीन रकल-ग, औबसयर




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