कबीर साहेब का बीजक | Kabir Saheb Ka Bijak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
51.67 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।
वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।
कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी ह
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कक ल्ाखी..
. झविगति की गति क्या कहीं, जाके गाँव न ठाँव ।.
गन विहीना पेखना । क्या कहि लोजे नाँव ॥
रतैनी ८
तत्वमसी इनके उपदेसा, हे उपनिषद् कहैं संदेखा ॥
ये निस्चय इनके बड़ भारी । वाहो को बरने अधिकारी ॥
परम तच्त्व का निज परवाना । सन कादिक नारद सखमाना।
याज्ञजलक आज जनक संँधादा । दुत्तात्रेंय वहै रस स्वादा॥
वहै बसिष्ठ राम मिल गाईे । वहै कृष्त ऊघव समभ्दाइ ॥
वहीं बात जो जनक दुढ़ाइ । देह घरे विदेह कहाईइ ॥
कल मय्यादा खेाय के । जियत मुवा नहिं . होय ।
देखत जा नहि' देखिया । अदृष्ट कहावे साय ॥
रमेनी &
बाँघधे अरस्ठ कर्ट नौ. सता, यम बाँघे अंजनि के पता ।
यम के बाहन बाँघे जनो, बाँघे खष्टि कहाँ लौ गनी ॥
बाँघे देव तंतोीस करोरी, समिरत बंद लाह गे तारी ।
राजा समिरे तरिया चढ़ी, पंथी समिरे मान ले बढ़ी ॥
अथ विहीना सुमिरे नोरी, परजा सुमिरे पुहुमी भारी ।
साखी
बंदि मनावे से फल पावे, बंदि दिया. से देव।
कहे कबोर से परे जा निसि दिन नामाहि लेव ॥
शरमेनी १०...
लाही ले पिपरारी बही । करगी काह न कही
आइ करगो भा अजगूता । जन्म जन्म यम पहिरे बता ॥
बूतापाहर यम कोन्ह समाना। तीन लेक में कोन्ह पयाना॥
बचे ब्रह्मा बिस्नु महेसू । सुरनरमुनि औ बाँ थि गनेसू
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