जीवन साधना | Jivan Sadhana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ने नीवन-साधघना हुआ.था । प्ठेटो ने जिन सदगुणों का प्रतिपादन किया था उनमें पहला स्थान आत्म-संयम को दिया गया उसके बाद साहस और बुद्धिमत्ता को और अन्त में . न्याय को । ईसाई धमं के अनुसार सदगूणों की दर भ्रात श्रात्म- त्याग से होती हे और फिर भक्ति और सवर्पिंण के बाद प्रेम को स्थान दिया गया है । जिन लोगों ने गम्भीरता-पुवंक ईसाई धर्म को स्वीकार किया श्रौर उसके अनुसार सद्‌्जीवन बिताने का प्रयास किया उन्होंने ईसाई धमें को इसी रूप में समभको झ्रौर अपनी वासनाओं का परित्याग कर सद- जीवन बिताना प्रारम्भ किया । इस आत्म त्याग में आात्म-संयम का भी समावेश हो जाता है ।. किन्तु यह नहीं समभकना चाहिए कि इस मामले में ईसाई धरम ने केवल अन्य धर्मों का अनुसरण मात्र किया । में ईसाई धर्म को उसके उच्च स्थान से श्रन्य अत्प-विकसित धर्मों की श्रेणी में नहीं बिठा सकता । यदि मुक्त पर एसा करने का दोष लगाया जायगा तो यह मेरे प्रति अन्याय होगा कारण मे ईसाई धमं की शिक्षा को संसार में सं श्रेष्ठ मानता हुं । वह अल्प विकसित धर्मों की शिक्षाश्रों से सवंधा भिन्न है । ईसाई धर्म की दिक्षा पूर्व प्रचलित शिक्षा का स्थान इसी लिए ले सकी कि वह उससे भिन्न और उच्च थी । कितु दोनों ही प्रक्कार की शिक्षायें मनुष्यों को सत्य और श्रेष्ठतो की श्रोर ले जाती हे और चूंकि ये हमेशा एक जसी होती हें इसलिए उनको प्राप्त करने का माग॑ भी एक ही होना चाहिए । और इस मागें पर आगे बढ़ने के प्रथम प्रयास भी अनिवायंत ईसाई और अईसाई दोनों के लिए समान होंगे । ईसाई श्रौर अईसाई सद्‌-जी्नन की शिक्षा में यह अन्तर है कि जहाँ अईसाई दिक्षा अन्तिम पू्णता की शिक्षा हू वहाँ ईसाई दिक्षा असीम पू्ण॑ता की शिक्षा है । प्रत्येक अईसाई शिक्षा मनुष्य के सामने




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