हिन्दी काव्यशास्त्र का इतिहास | Hindi Kavya Shasta Ka Etias

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Hindi Kavya Shasta Ka Etias by भगीरथ मिश्र - Bhagirath Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रखुनाथ श्रलंकार एवं रस दर्पण ग्रन्थों का उल्लेख मी कहीं नहीं मिलता । प्रस्ठुत निवबन्ध कस को ये ग्रन्थ डॉ० मवानीप्रसाद याशिक के सौजन्य-द्वारा याशिक संग्रहालय से प्रात हुए और उन्हीं हस्तलिखित ग्रन्थों के द्ाधार पर ही इनका विवरण दिया गया है | चाय चिन्तामशि के कविकुल कल्पतर काव्यप्रकाश काव्य विवेक रस मंजरी झ्रादि ग्रन्थों का तो उल्लेख मात्र मिलता है पर उनके ग्रन्थ ूंगार मंजरी का उल्तेख कहीं मी प्रात नहीं है । लेखक ने दतिया राज-पुस्तकालय में हस्तलिखित रूप में इस ग्रन्थ को देखा श्रौर उसी के श्राधार पर इसका विवरण प्रस्तुत निवन्ध में दिया गया है | इसी ग्रकार काव्यशास्त्र पर लिखे गये एक ब्हत्‌ श्रौर महत्त्व पूर्ण ग्रन्थ रामदास कत विकल्पद्र म का मी विवरण श्रप्राप्य है इसका भी विवेचन लेखक ने दतिथा-राज पुस्तकालय में देखी प्रति के श्राघार पर किया है | नारायण कवि की नाट्य दीपिका हिन्दी म॑ लिखी नाटक पर प्रथम पुस्तक है पर इसका भी कहीं उल्लेख नहीं है । लेखक ने दतिया के किले में स्थित पुस्तकालय से इसकी प्रति प्राप्त की श्र इसका विवरण दिया है| इन नवीन ग्रन्थों के अतिरिक्त सात-द्ाठ ऐसे महत्वपूर्ण. अन्थ भी हैं जिनका हिन्दी इतिहासां में नामोह्लेख मात्र तो मिलता है पर महर्वपूण होते हुए भी उनका विवरण हीं मिलता हैं | श्रत लेखक ने मुद्रित या हस्तलिखित रूप में इने ग्रन्थों को देखकर इनका झावश्यक विवरण उपस्थित किया है। ये ग्रन्थ हैं-- चिन्तामणि का कविकुल- केल्पतरु याकूब का रसभूषण राय शिवप्रसाद कत रसभूषणु रणुधीरसिंह का काव्यरत्नाकर जगतसिंह का. साहित्यसुघानिधि रसिकसुमति का अलंकारचन्द्रोदय शोभ कवि का. नवलरस चन्द्रोदय श्र लप्िराम का रावशेश्वर कल्पतरु । ये ग्रन्थ भी दतिया श्रौर टीकमगढ़ के राज-पुस्तकालयों याशिक संग्रहालय तथा पं० कष्णुविहारी जी ह इस्तकालय से आस हुए | इनमें कविकुलकल्पतरु तथा रागशेश्वर कल्पतर तो मुद्रित हैं श्रन्य ग्रन्थ इस्तलिखित हैं । इसके साथ ही प्राप्त अन्थों की प्रतियों में श्रौर इतिहासकारों के लेखे में दिये ह्ए रचना काल में कहीं कहीं मेद मिला है जेसे सम्रनेशकत रसिकविलास का रचनाकाल मिश्रवन्खु विनोद में सं० १८४७ दिया हु है जब कि दस्तलिखित प्रति में जो दृतिया में प्रात हुई थी रचनीकाल सं० १८२७ बि० दिया हुआ है (संवत्‌ ऋषि जुग बसु ससी) . इसी प्रकार रतनेश या रतन कवि के श्रलंकार दपण का रचना काल शुक्क जी के १. देखिये मिश्रबन्घु बिनोड भाषा रु छध भू गए भाग २ पृ० ३० )




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