मार्क्सवाद मीमांसा | Maarkasvad Mimansa
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.33 MB
कुल पष्ठ :
101
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)+न | जि सानसचाद-मामासा अं
ना
सन
नलरंएएयतए तएलररसटवकश,
डाविन के अनुसार आज का चराचर बिदव-वनस्पति, जोव फलतः
सनुष्य भी-सभी कुछ विकास क्रम का परिणाम है जो करोड़ों ब्षों से
लगातार होता चला आ रहा है ।
लेनिन ने कहा है “विरोधी तत्वों के संघष का नाम विकास है''
नननननननना ते दमन्यननयन्व०
भोतिकता
दन्द्रात्मक सोतिकवाद दर्शन अपनी भौतिकता की मान्यता से पुरान
दर्शनों की तोन प्रसिद्ध बातों का विरोध करता है ।
कु चेतना देतवाद (ब्रह्मादत, विज्ञान ढंत, शून्यवबाद आदि)
खएईस्वरवाद
शृ--आत्मबाद
माक्संवादी लोग इन तीनों वादों को आदर्दावाद कहते हे और
रोध करते हे । उनके वक्तव्य ये है :--
“संसार स्वभाव से हो भौतिक है ।”'
संसार को किसी व्यापक आत्मा की आवश्यकता नहीं है ।” '
व्यष्टि मे समष्टि रूपी इस संसार को किसी देवता या मनुष्य ने
नहीं बनाया वरन् वह एक सप्राण ज्पोति. है जो थी, है और सदा रहेगी ।
बह नियमित रूप से चल जल उठती है ओर नियमित रूप से ठंडी हो
जाती है ।” हिरक्ला इट्स के इस वक्तव्य को लेनिन ने इंड्रात्समव भौतिक
वाद के मूलभूत तत्वों की बड़ी अच्छी व्याख्या कहा है ।
आवुशंवाद केवल चित को वास्तविक सत्ता स्वोकार करता है ।
उसके लिये प्रकृति. . सौतिक जगत की सत्ता केवल हमारे चित में
इन्द्िय बोध में कल्पनाओं .और संवेदनाओं में है । द्सके
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