आर्थिक भूगोल | Arthik Bhugol

Arthik Bhugol by शंकर सहाय सक्सेना - Shankar Sahay Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क् श्रार्थिदमूगोल जो जातियाँ एक से जलवायु में रही ई उनको रदन-सदन भहुत कु एक्सी टी दोती दें । इस कारण ऐसी जातियाँ शीघ्र दो श्पने देश जलवायु श्रौर के समान जलवायु वाले देशों में जाने को तैयार प्रयास दो जाती हैं । मिन्न जलवायु मनुष्य के प्रयास के लिये बाघ (18200 है | प्रिरिश जातिके लोग प्रति वर्ष वनाढ़ा तथा सयुक्तराज्य श्मेरिका में जामर बसते हैं किम्तु बहुत कुछ प्रमत्र करने पर मा श्रास्ट्रेलया तथा दक्षिय श्फौका में श्धिक मनुष्य जाकर नहीं बसते । मारत या गरप मैदानों की मोपय ररमी से धबरावर श्ग्रेज उया मारतव'सी हिमालय तथा दूसरे पद्दाढ़ी स्थानीं पर चने जाते दे । दस थोड़े बाल के प्रवास के दी कास्थ शिमला, मैंनीताल, दार्जलिंग, मयूरा, उस्क्मड, पचमढी तथा श्रातू मदलपूर्ग स्थान पन सय हैं । मनुष्य को अपने सजाने बनाने में जनयायु का बहुत विचार करना पढ़ता है। जिन देशों में वर्षा श्रधिक होती दे घदँ के सझानों का छत जलवायु शोर. दान होदो हैं । पहुत ठंडे देशों में मकान पिना धाँयन के इमारतें बनाये जाति हैं श्रीर गरम देशों में पिना श्ॉगन का सजाने रहने योग्य नहीं शोता | उड़े देशों में कमरे एक दूसरे से सरारर मनाये जाते हैं चिसये रदने वाले ठड़ से बच सकें । गरम देशों में छन दालू, नहीं होती श्ौर मकान में च्यादा हवा आने के लिये बरामद चनाया जाता है ) ठंडे देशों में सर्वे श्रधिक चौड़ा यनाईं जाती हैं जिसमे सूरज वी धूप सूप मिलती रहे. । इसके विपरीत सरम देशों में पतला गलियाँ हो श्रधिक दिलाई देती हैं 1 हाँ जद ब्यामदरफ्त अधिक होती हैं वहीं चौढ़ी सड़क ही बनानी पढ़ती है । सत्तेप में कद सफने हैं कि मनुष्य का टैमिक जीयन जलवायु से पहुत कुछ प्रमावित होता है 1 स्थापारिक मांगों पर भी जलवायु वा कुछ कम प्रयाव नहीं हे । जिन स्थानों पर चहुत बर्प पढ़ती दे वहाँ रेल और जहाज व्यर्थ दो जाते जलगयायु और दें । जाड़े में उत्तर के समुद्र जम जाते हैं श्ौर जदयों वा व्यापारिक मागे. दाना जाना रुक जाता दे । जी रेलवे लाइनें थे से दर जाती इंच सी मार्ग को अनुविधा हो जाती हे । जिन देशों में दर्पा बहुत श्रधिक दोनो है वहाँ सी मार्ग को बहुत झ्सुविधा हो जाती हे । जिन देशों में श्वत्वघिक वर्ष होती दें रेलवे लाइनें बद जाती ईं । सड़कों पर पुलन होने के कारण उनका उपयोग नहीं शो सकता, साथ ही कच्चे रास्तों पर ध्याना-बाना हा श्रप्मम्मव हो जाता है | रेगिस्ठानों में इवा रेत की पदाड़ियाँ खड़ी करके रास्ता रोक देती है ्औौर रेलवे टूनों को घरों रुइना पडता हैं । मावीन काल में जय जददाज सार से नहीं चलते थे दर तो वा हो उनका झवलम्बन था व --




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