भारत के स्त्री - रत्न भाग - ३ | Bharat Ke Stri Ratna Part -iii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.17 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११ सती अजना
अपनी वीरता प्रदर्शित करने का सुअवसर देख; कुमार पवनजय युद्ध में
जाने को कटिबद्ध हुआ |
युद्ध के छिए जाते समय माता-पिता के चरणस्पर्श करके वह
शख्तागार में गया । अरतना से मिलने तो वह क्यों जाने छगा था;
अतः स्वयं अंजना ही उसके दर्शनों को वहाँ आ खड़ी हुई। परन्तु
कठोर-हृदय पवनजग्र ने यहाँ भी उसका तिरस्कार दी किया । उससे
वात करना तो दूर; उसने एक नज़र उसकी ठोर देखा तक नहीं,
और रास्ते से उसे एक ओर ढकेलते हुए, वद्द आगे बढ गया ।
अरना के स्त्री-हृदय को इससे वड़ी चोट ठगी । युद्ध में जाते
समय मिलना या एक नजर देखना तो दूर; उछटे सास-ससुर सब के
सामने ऐसा तिरस्कार ! उसका मन छज्ञा ओर क्षोभ से विह्नल हो
उठा। साख़िर प्रभु को ही एक-मात्र आधार मानकर उसने निश्चय
किया--सदाचारपूर्वक अपना जीवन-यापन करूँगी और सयम का
जत लेकर भगवान् का नाम जपूँगी ।
उधर पवनजय अपने मंत्री प्रहसित के साथ सेना लेकर रावण
को मदद को चढ दिया । मार्ग मे एक सरोवर के किनारे एक दिन
उन्होंने अपना मुकाम किया। रात को किसी पक्षी की हृदयवेघक
आवाज सुनकर राजकुमार चौंक पडा । उसने मंत्री से पूछा--“यह
किसका स्वर है प्रहसित ?”
“यह प्रदीप नदी के समीप है,” प्रहसित ने कहा; “इसलिए उसके
दोनों तीरों पर चकवा-चकवी बोल रहे है।”
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