सम्यक्त्व - चिंतामणिका | Samyaktva Chintamani

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दरबारीलाल कोठिया - Darbarilal Kothiya

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पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्यग्दशन श्छ आचायोंनि विभिन्‍न शैलियोसे वर्णन मात्र किया हैं । जैसे आाचरणप्रघान शैलीको मुख्यता देनेकी अपेक्षा देव-शास्त्र-गुरुकी प्रतीतिको, ज्ञानप्रघान शैलीको मुख्यता देनेकी अपेक्षा तत्त्वार्थश्रद्धानको भौर कषायजनित विकल्पोंकी मन्द-मन्दतर अवस्थाको मुख्यता देनेकी अपेक्षा स्वपरश्रद्धान तथा भात्मश्रद्धानको सम्यग्दर्शन कहा है । अपनी योग्यताके मनुसार चारो दशोलियोको अपनाया जा सकता है । इन चारो दौलियोमें भी यदि मुख्यता भौर अमुख्यताकी अपेक्षा चर्चा की जावे तो तर्वार्थश्रद्धानरूप ज्ञानप्रघान दौली मुख्य जान पढ़ती है बंयोकि उसके होने पर 'ही शेष तीन शैलियोको बल मिलता है । सम्परदर्शन किसे प्राप्त होता हे ? मिध्यादृष्टि दो प्रकारके हैं--एक भनादि मिथ्यादुष्टि भौर दूसरे सादि मिथ्यादृष्टि । जिसे भाज तक कभी सम्पग्दर्शन प्राप्त नही हुआ है वह मनादि मिध्यादृष्टि है और जिसे सम्यग्दर्दन प्राप्त होकर छूट गया है वह सादि मिथ्या- दृष्टि जीव है । अनादि मिथ्यादृष्टि जीवके मोहनीयकमंकी छब्बीस प्रक़ृतियोकी सत्ता रहती है क्योकि दर्शनमोहनी यकी मिथ्यात्व, सम्यक्मिथ्यात्व भौर सम्यक्त्व- प्रकृति इन तीन प्रकृतियोमेंसे एक मिधथ्यात्वप्रकतिका हो बन्घ होता है, दोष दोका नही । प्रथमोपदम सम्पग्दर्शन होने पर उसके प्रभावसे यह जीव मिथ्यात्व- प्रकृत्िके मिथ्यात्व, सम्यक्मिध्यात्व और सम्पक्त्व प्रकृतिके भेदसे तीन खण्ड करता है । इस तरह सादि सिध्यादृष्टि जीवके ही सम्यक्मिथ्यात्व भौर सम्यवत्व प्रकृतिकी सत्ता हो सकती है । सादि मिध्यादृष्टि जीवोमें मोहनीयकर्मकी सत्ताके तीन विकल्प बनते हूँ--एक अट्टाईस प्रकृतियोकी सत्तावाला, दूसरा सत्ताईस प्रकृतियो की सत्तावाला भौर तीसरा छब्बीस प्रकृतियोकी सत्तावाला । जिस जीवके दर्शनमोहकी तीनो प्रकृतियाँ विद्यमान हैं वह अट्टाईस प्रकृतियोकी सत्तावाला है । जिस जीवने सम्यकत्वप्रकृतिकी उद्देलना कर ली है वह सत्ताईस प्रकृतियोकी सत्ता वाला है और जिसने सम्यक्मिथ्यात्वप्रकृतिकी भी उद्देलना कर ली है वह छब्बीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला है । सम्यग्दर्दनके भौपशासिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक इस प्रकार तीन भेद हैं । यहाँ स्प्रथम भोपशसिक सम्पग्दर्शनकी उत्पत्तिकी अपेक्षा विचार करते हैं, क्योकि भनादि मिथ्यादृष्टिको सर्वप्रथम भौपशमिक सम्यग्दर्शन ही प्राप्त होता है। भौपशमिक सम्यदर्शन भी प्रथमोपशम गौर द्विती योपशमके भेदसे दो प्रकार- का है। यहाँ प्रथमोपशम सम्यग्दर्शनकी चर्चा है । द्वितीयोपशमकी चर्चा आगे की जायगी । इतना निद्चित है कि सम्पग्दर्शन सज्ञी, प्चेन्द्रिय, पर्याप्तक, भव्य जीवकों ही होता है अन्यको नहीं । भ्व्योमे भी उसीको होता है जिसका ससारभ्रमणका ्‌्‌




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