ब्रह्म - प्रकाश | Brahm -prakash

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Brahm -prakash by रामदासजी - Ramdasji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) :. (४) जह्मा के' गिदे छः गृह घूमते हैं 'झौर यही उनें के' मेस्वर हुए । ही '(४) के गिरदे छधात्‌ पारा के. गिर: ( सप्तऋपी राह केतु ) मिल कर नामिश्त्रर कौंसिली है श्ौर घूमते हैं या उनकी पूजा करते हैं । यही नोंगृरह परत्रह्म के रथ के धोड़े हैं। ' नम्बर (१) सूदम रूप हूं और नम्पर (०) शून्य या गोल घिन्दी साकार रूप है । नम्बर ( १) ब्रह्म जन्त्र-अच्चा-गभ-सफेद सूरज है । » (२) ब्रह्म जन्त्र-बाल अवस्था-लाल सूरज है । » ( ३) विष्णु जन्त्र-तरुण अवस्था-लाल श्वेत सूगज है » (४) शिव जंत्र-ुद्ध 'अचधा-घुघल्ला सूरज हैं । :... ज (०) परत्रह्म बाल न्रह्मचर्य पार ज्रह्मगननचयं रण भग तन जो कि सदा ब्रह्मचारी रददने बाला जो कि कभी नहीं सोता है इमेशा जागता रहता है उलका रह नोला श्वेत सूरज हें । ः नम्बर ( ० ) से जितनी रेखायें सीधी निकलती हैं. उन रेखाओं के इतने नाम हैं--. क ं थ , . लालच की डोर, प्रम॑ का तार, बिजली का तार, दायरं- लेश का तार, हरजा मौजूद; सच व्यापक, सबंज्ञ, करम लाइन, हुर एक जांतिंथों या जोतियों के मिलने की. जर्गद्र, , मोक्ष- लाइन, सूदम रूप या सूदम लाइन कहते ' हैं, हर एक जांतितों या तारागणों का रास्ता हे जो मनुष्य या तारागण या जीव या देवता 'चरोरह सीधे अपनी लाइन पर चत्तते हैं. बह जरूर गोल बिन्दी तक पईुंच जाते ' हैं और जो टेढ़ा झर्थात्‌ं एक दूसरे कीं काट करता हैं बदद गोल लाइन पर चला जाता है। इसीलिये मनुष्य को चाहिए'कि किसी को बुरा. न कहे और




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