अकबरी दरबार भाग 2 | Akbari Darbar Bhag 2

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Akbari Darbar  Bhag 2  by बाबू रामचंद्र वर्मा - Babu Ram Chandra Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( < ) तुरंत मुनइमखां को भेजा कि सेना लेकर कन्नौज के घाट उतर जाओ । वद्द यद्द भी जानता था कि यद्द मुकाबला किससे है । साथ हो वह यह भी समभ गया था कि य जा लोग दाग लगाते हैं धार सेनापति होने का दम भरते हैं, ये कितने पानी में हैं इसलिये वह स्वयं कई दिनों तक सेना की तैयारियों में सवेरे से संध्या तक लगा रहा । उसने भ्रास पास के झ्रमीरों श्रौर सेनाओं का एकत्र किया | जो लाग उसके सामने उपस्थित थे, उन्हें उसने पूरा सिपाही बना दिया था । इस लश्कर में दस इजार ता कवल हाथी थे । बाकी पाठक धाप ही समभक लें । इतना सथ्र कुछ हाने पर भी उसने प्रसिद्ध ह किया कि दम शिकार करने के लिये जा रहे हैं धार बहुत ही फुरती क॑ साथ चल पड़ा । यहाँ तक कि जा थोड़े से नाग खास उसक॑ साध में थे, वे इतने घाड़े थे कि गिनने के याग्य भी नघे | मुनइमस्वां इरावल ब्रनकर आग श्राग रवाना हुमा था । वह अभी कन्नौज में ही था कि धकबर भा वहाँ जा पहुँचा । पर वद्द वुड्ढ़ा बहुत ही सुशीन्ष श्रौर शांतिप्रिय सरदार था । वह वास्तव में बादशाह का सच्चा शुभचिंतक श्रोर उसके लिये भ्रपनी जान तक निद्धावर करनेवाला था । वह इस भगड़ को जड़ का झ्रच्छी तरह जानता श्रौर समकता था । उसे किसी तरह यह बात मंजूर नददीं थी कि लड़ाई हो; श्रौर यह कई पीढ़ियें। का सेवा करनेवाला व्यथ झ्पने शत्र्था कं हाथे।




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