सम्पति-शास्त्र | Sampati - Shastra

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Sampati - Shastra  by महावीर प्रसाद द्विवेदी - Mahavir Prasad Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका । ः ९ पारचय प्राप्त होता है। केवल स्वदेशी भाषायें ज्ञाननेवालों के लिंए इस दाख्र का अच्छा ज्ञान होना पायः दुर्लभ है। सन्तोंप को बात है, कुछ दिनों से लोगों का ध्यान इस-दाख की दिवक्षा की ओर जाने लगा है | बंबई के शिक्षा-चिभाग के डाइरेकूर ने इस शाख्र की कुछ पुरुतकों का अनु- चाद मराठी में कराया है । पूना की दृद्धिणा पाइज़ क्रमिटी ने भी एक आध अँगरेज़ी पुस्तक का अनुवाद मराठी में कराकर अजुवादक के इनाम भी दिया है। पर भार प्रान्तों में सम्पत्तिशाख्र-सम्बन्धी पुस्तकें इस देश की भाषाओं में लिखाने के छिए अधिकारियों, अथवा अन्य समर्थ आदर्मियां, अथवा सभा-समाजों ने विशेष चेप्टा नहीं की । तिस पर भी उदूं) वैंगठा ग्रार गुजराती मापाओं में इस चिपय को कई पुस्तकें प्रकाशित हे गई हैं | रही पच्मरी हिन्दी, से उसकी उन्नति की तरफ़ ता हमारे प्रान्तवासी विल- कुछ हो उदासीन से हो रहे हैं ! फिर उसमें सम्पत्तिशाख्र-चिपयक पुस्तक लिखने आरार लिखाने की चेट्रा कैसे हे । सम्पत्तिद्याख इतने महत्त्व का है कि इस पर पुस्तकें लिखना सब का काम नहां । जिन्होंने इस शाख का अच्छी तरह अँगरेजी में अध्ययन किया है, भ्रार जिन्होंने देश की साम्पत्तिक अवस्था पर अच्छी तरह विचार भी किया है, बही इस काम के याग्य समझे जा सकते हैं । हम इन शुणां से सर्वधा दीन हैं। इस घिपय की पुस्तक लिखने की हमें कुछ भी याग्यता नहीं । यहाँ पर इमसे यह पूछा जा सकता है कि यदि यह वात है. ता फ्यों तुमने इस पुस्तक के लिखने की ध्रूप्टता की ? इसके उत्तर में हमारा यह निवेदन है कि हमारे इस चापल्य का कारण--'श्रकरणान्मन्द्करण श्रेयः”--लेकाकति में कददा गया सिद्धान्त है । जिनमें सम्पत्तिशाख-विपयक अच्छी पुस्तक लिखने का सामध्य है वे हिन्दी पढ़ना तक पाप समभते हैं , हिन्दी में पुस्तकें लिखने की बात ता दूर रद्दी । इस दृ्या में हमारे सहश अयेग्य जन भी यदि अपने सामथ्य के अनुसार इस शाख के सूल सिद्धान्त हिन्दी में छिखकर उनके प्रचार का यल्न करें ते काई दोप की बात नहीं । इसके छिए यदि किसी के दोप दिया जा सकता हैं ता उन्हीं के दिया जा सकता है ज्ञा इस शाख्र का अच्छा शान रखकर भी उससे अपने देश-भाइयों के कुछ भी लाभ पहुंचाने




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