वैदिक गणित शास्त्र | Vaidik Ganit Shastra

Vaidik Ganit Shastra by डॉ. एम. एल. व्यास - Dr. M. L. Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( है ) धंक गणित से सम्बन्धित सिदाग्तो के विवरण हैँ । तीसरे में रेखा गणित के सिद्धान्तों- साध्य एवं रचनाप्रो है ८0 तथा. चतुर्थ श्रघ्याय में बीजगरिएत के मूलभूत सिद्धान्तों शर्ट 0168) का वन किया गया है । अन्तिम प्रध्याय में इस श्रास्ति का निवारण किया गया है कि श्रायं लिसना नहीं जानते थे । प्रामाणिक मामंप्री के ध्ाघार पर यह बताया गया झ्रि ध्रार्य श्ग्वदिक-काल (पूर्वे वेदिक-काल) से ही लेरान कला (670 धघ से परिचित थे । बेदिए साहित्य पे गशित विधेरक मस्यों को टेटोलने की प्रेरशा मुझे; स्वामी दयातर्द सरम्बती कत भाष्य मुनि, पं रघुनन्दन कृत “वैदिक सम्पत्ति” आदि ग्रस्यो को श्रध्ययन करते समय मिली । जैव सम्पूर्ण वेद वागमय को पारायण' किया तो इसमें गणितीय लिद्धासों का अक्षय भण्डार मिला, किन्तु समस्त वागमय की थाह लेना मेरे लिए संम्भव,मही था । इसी कार मेने मपने सामान्य श्रध्ययन के ग्राघार पर जी कुछ मेरी ध्रपनी हप्टि से प्रस्तुत किया है बह पाठकों के सामने प्रस्तुत है । इस पुस्तक की रचना मे मेने श्रब तक प्रकाशित श्रनेक विद्वानों के प्रन्थों से सहायता ली है, में उन सबका कृतन्न हूं । इसके श्रतिरिक्त इस कार्य को सम्पन्न कराने में स्व० श्री दुरगालाल श्री माथुर, भू० पू० भ्रघीक्षक पुरातत्व एवं संग्रहालय उदयपुर, प० सुधाकर जी, बेगलौर, डा० रामचन्र व्यास, गणित विभाग, जोधपुर विश्वविद्यालय, जाधतुर, द्याम सुन्दर व्यास, पुस्तकालयाध्यक्ष, सरस्वती भवन पुस्तकालय, उदयपुर, डॉ० बुजमोहन जावलिया, उदयपुर श्रादि का जो सहयोग रहा, उसके लिए में उन्हे धन्यवाद श्रपित करता हूं । गणित के मूर्घन्य विद्वान डॉ० वो. एस, महाजनी के प्रति हादिक कृतज्ञता शापित करता हूँ, जिन्हींने पुस्तक का प्राककथन लिखा ! श्रंपने प्ादरणीय मित्र डॉ० भवानीलाल भारतीय ने कुछ शब्द लिखने की जो श्रनुकम्पा की, उसके लिए भी मैं उनका ऋणी हुं । जिनके चरणों में बेठकर मेने वेद एवं वैदिक साहित्य का अध्ययन किया उन परम कपालु परम पूज्य पिताजी प० गोवर्धन जी व्यास को मात्र कतशता ज्ञापित कर मैं उचण नहीं हो सकता, यह तो उन्हीं को प्रेरणा की प्नं-पुष्पं है। मैं झपने गुरदेव हॉण रामप्रसाद व्यास के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करता हु जो शो खोज के क्षेत्र में निरन्तर मेरे प्रदशंक वे रहे । श्रन्त में मैं अपने मित्र श्री उमराव सिंह जो मंगल के प्रति भी श्राभार॑ प्रदर्शित करता हूं जिनके प्रयत्नो से ही यह पुस्तक सुव्यवस्थित रुप से पाठकों तक पहुँच सकी है । वेद निलयमू मपंक्त विद्यावाचस्पति ६२०, रसाला रोड, जोधपुर ।




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