आत्म धर्म | Atm Dharm
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.41 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद - Brahmachari Shital Prasad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६
चाहे कोई मानव सुन्दर हो या अन्दर, चाहे वह काडे रंगका
' हो था पीत व गोरा हो, चाहे वह ऊंच हो व नीच तथा दे
चह हिन्दू धर्मी हो चाहे मुनल्मान, यहुद्दी, जैन, ईनाई या चोद
तथा नास्तिक् हो प्रत्येक मानवकें भीतर यही माबना निवाह
करती है कि मुझे सुख और शांति हो ।
मानव नाहिसे हटकर यदि हम पट्ु, पक्षी आदिकी
जातिकी तरफ दृष्टि ढाटेंगे तो हमें विदित होगा कि उनको भी
सुख और शझांतिकी चाहना है | कोई भी पु भूखा प्यासा
रददना व सरदी गरमी सहना व मारा पीटा जाना व कठोर हिर-
स्कारके वचन सुनना व रोगी होना नहीं चाहता और न मनमें
शोक, दुःख, आकुछता तथा पीड़ाके दोनेपर अपनेको खुली जडु-
भव करता है | भय व ता उनके मनको भी बुरी माद्म होती
''है। वे भी निमेय, मिंता रद्विति तथा शांतरूप रहते हुए जगनेक्रो
अय भीत, निंतातुर तथा अशांत रहनेकी जपेशा ठोक मानते हैं।
भले दी पड, पक्षी मनुष्योंके समान वात करनेको सक्ति न
नखनेके कारण उनके मनमें जो दुश्ख होता है उसको कहनेशो
असमर्थ हों पर यह बात निश्चित हे कि नैसे सु और शांदिके
चाहनेवाठे मनुष्य हैं ऐसे पु पक्षी भी हैं ।
' जो इतने छोटे जंतु हैं कि जिनका दृष्टिमें आना कटिन
'है थे भी जब रूम त्राप्तित दोते हैं तत्र सुख मानते हें । देखा
जाता है कि नो किपती छोटे मंहुको अपनी अगुडीके स्पकष करानेसे
दुःखी करनेका प्रयत्न करो तो व नेतु घनड़ाकर इघर उपरे
आगता है । उस समय बढ मपरपते इतना व्याकुड हो नाता दे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...