प्रेमपत्र राधास्वामी तीसरी जिल्द | Prempatra Radhaswami Tisari Jild

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Prempatra Radhaswami Tisari Jild by राधास्वामी - Radhaswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“----ऊजजखऊसजरूलनरूरूरू: बचत नं० है 'प्रेमपत्र राघास्थामी जिल्द सा : द्वार या दीर्त या सतसंगी भाई, भाव और प्यार के ' सामुनासिबर शर नाजांयज नहीं है तो उसी घाह- - तियात के साथ जैसा कि अनइच्छित भोग के वास्ते : | ऊपर लिखा गया है उसमें बतांव करे। भौर जो | _ बह मामूली भोग नहीँ है, तो बाद उसके भोगने के | _ ताकि उसका छसर उलटां पैदा न होने ॥ . छमैसत दरजे के गुज़ारे के नहीं - है, उसके बास्ते इच्छा | ' उठाना ऐसी ख्वाहिश परमार्थी को हिसे करके या मान | ' .बड़ाई के वास्ते उठाना मना है। बलूकि जो इच्छा की प्रापी के निमित्त जतन करे, तो वह राधास्त्रामी 1, ' दाल की मौज के झासरे और उनकी दया के भरोसे | पर करना चाहिये । शौर जो इत्तफ़ाक से बह जतन | परइच्छित उसको कहते हैं कि जो कोई झपना रिश्ते- साथ कोई पदार्थ या मोग इस शुख्स के वास्ते तडयार करके सनमुख रक्खे या उसके पास भेजे तो जो वह थोड़ी देर भजन या ध्यान करना भी. सुनासिंब होगा, | १४--फज़ल इच्छा से मंतलब यह है कि जिस बात | या काम या चीज या पदाथ की जरूरत, वास्ते अपने | जरूरी काम या पदार्थ वगैरह की उठाने, उौर उस | सिद्ध न.द्दोबे, तो समस्तना चाहिये कि इसी . में कुछ | मसलइत है, घौर जैसे बने. तैसे ऐसी मौज के साथ | मुवाफुक़त करनी सुना पे |




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