शंकर और स्पिनोजा के दरसन में सत् का प्रारूप | Shankar Aur Spinoja Ke Darshan Me Sat Ka Praroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस प्रकार शकर एव स्पिनोजा की दार्शनिक विचारधाराओं पर विहगम दृष्टिपात करने से सुस्पष्ट है कि इनकी विचारधारा द्वैतवाद आदि दार्शनिक विराधों से रहित है। आधुनिक भौतिकवादी जगत मे अनेक प्रकार की विलासिता मे लिप्त मानव के लिए शकर एव स्पिनोजा अपने ढग के अद्वितीय दार्शनिक है। इनके द्वारा मानव का अतीव कल्याणकारी पथ प्रदर्शन हुआ है। यह शोध-प्रबन्ध शकर एव स्पिनोजा के दर्शन मे सत्ता के स्वरूप का तुलनात्मक अध्ययन करने का एक विनम्र प्रयास है। यद्यपि इसका यह कथमपि अभिप्राय नहीं है कि इसके पूर्व ऐसा कोई प्रयास नहीं हुआ है अथवा जो प्रयास हुआ है वह अच्छी कोटि का नही है| प्रत्युत इस शोध प्रबन्ध के माध्यम से शकर एव स्पिनोजा के पौर्व एव पाश्चात्य विचारों. को एक समन्वित रूप में समझने का प्रयास है। अस्तु यह ग्रन्थ उक्त रूप . मे विद्वानों को एक सुअवसर प्रदान कर सकेगा | इसके अतिरिक्त यह शोध-प्रबन्ध शकराचार्य एवं स्पिनोजा के दर्शन मे अभिरूचि रखने वाले एव जिज्ञासु शोध कर्ताओं के लिए उपयोगी हो तभी शोध की सार्थकता होगी। इन दोनो विचारकों के दर्शन मे अभिव्यक्त विचारधारायें शुष्क तर्कजाल एवं बौद्धिक अमूर्तीकरण नहीं बल्कि मानव की सासारिक पीडा को शान्ति प्रदान करने वाली है। शंकर एवं 15




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