सोना और खून भाग 1 | Sona Aur Khoon Part 1

Sona Aur Khoon Part 1 by आचार्य चतुरसेन - Achary Chatursen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इसी समय रूज़वेल्ट ने भ्रमेरिका के सिंहासन को सुशोभित किया । यह पहला श्रमेरिकन राष्ट्रपति था जिसने दुनिया के मामलों में खुल कर हिस्सा लिया । पर, झब दुनिया बदल गई थी । समाजवाद जन्म तो ले चुका था, पर शझ्रभी वह पूंजीवाद से ही उलभक रहा था। इंगलेण्ड ने एक बार भारत का सोना लूट कर सिर उठाना चाहा, पर बेकार । ब्रिटिश. पालेमेंट श्रब पूंजीवाद श्रौर लोकसत्ता का श्रखाड़ा बन रही थी । भारत. में हज़ारों श्रादमी जेलों में सड़ रहे थे । गांधीजी यरवदा जेल में बन्द थे । दमन जोरों पर था । यतीन्द्र ने जेल में भूखों रह कर प्राण दे दिए थे । सीमान्तों पर ब्रिटिश विमान बम बरसा रहे थे । दक्षिणी श्रफ्रीका में .. जातीय द्वेष श्रौर श्राथिक संघर्ष ने ग़ज़ब ढाया था । यही हाल पूर्वी श्रफ्री का की था । जब से केनिया में सोना निकला था, झ्रफ़ीकियों के दुभोग्य में चार चांद लग गए थे । मिश्र में झराज्ञादी की बेचैनी फली थी । दक्षिण- पूर्वी एशिया के देशों --इन्डोनेशिया, हिन्दचीन, जावा-सुमात्रा, डचइंडीज़ _ और फिलिपाइन द्वीपों में विदेशी शासन का जुझा उतार फेंकने की जद्दो- हृद चल रही थी । चीन में जापान क़त्ले श्राम कर रहा था । जापान के हौसले बढ़े हुए थे, भ्रौर वह विश्व साम्राज्य के सुपने देख रहा था । पर उसकी सब से बड़ी बाधा सोवियत रूस थी, जो इस समय समूचे उत्तरी एशिया में एक संसार का निर्माण कर रहा था । वह एक प्रकार से लड़खड़ाते सभ्य संसार को ब्ुनौती दे रहा था । जहाँ मंदी श्रौर बेकारी पूंजीवाद का गला घोंट रही थी । सोवियत संघ के इलाकों में श्राशा, शक्ति श्रौर उत्साह के अ्रंकुर फूट रहे थे । संयुक्त राज्य भ्रमेरिका पर संकटों के बादल उमड़ रहे थे । इंगलैण्ड श्रब समूचे संसार .का मुखिया नहीं रह गया था । उस की लहरों पर हुकूमत खत्म हो छुकी थी । वह समूची दुनिया से सिकुड़ कर अ्रपने साम्राज्य में सीमित हो गया था । श्ौर अरब वह साम्राज्य भी डगमग- डगमग हो रहा था । हिटलर श्रौर उसके साथी अब युद्ध की भाषा बोल रहे थे। संसार के सारे देश झाथिक राष्ट्रवाद की राह पर दौड़ कर युद्ध- स्थली पर एकत्र होते जा रहे थे । घटनाएं अटल भाग्य की भाँति संसार हट




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