प्रेमपत्र राधास्वामी जिल्द 5 | Prempatra Radhaswami pachvi Jild

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Prempatra Radhaswami  pachvi Jild by राधास्वामी - Radhaswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एटा . | चचन १ _.. प्रेमपेत्र राघास्वामी लिल्द ५... -. ७ मानी घर घपहुंकारी लोगां से मेल ध्वपौर महब्बत बहत कम यानी सिफ़ जरूरत के मुवाफ़िक़ क़ायमं रहेगी 1 घ्दौर उसकी नजर में दुनिया ध्पीर उसके सामान घ्पौर उसके खड़े घ्पोद्मियों को इज्जत घ्पौर कदर दिन ९- | चटती जावेगी घ्पीर उनका संग करने में अपना नक- 4 सान घ्पौर ध्पकाज मालम पड़ेंगा ॥ ०-सचचे घ्पौर प्रेमी परमार्थी के मन में हमेशा . यही चाह बनी रहेगी कि मन मत छोड़ कर जिस | कदर जरुूदी बन सके गरुमखं भंग .में बतांव करू घ्ौर कुल्ल मालिक सत्त पुर्ष राधास्वामी दयाल घ्पौर सतगरु की मौज के साथ मुवाफ़क़त करूं ध्पीर रजा में बरतें श्र इस श्पासा के पूरन करने के वास्ते उसकी क्रोशिंश बराबर जारी रहेगी । १ -सच्चे प्रेमी के मन श्र सुरत की चाल घंतर में भी सहज बढ़ती जावेगी ध्पीर प्रीत ध्पीर प्रतीत कुल्छ मालिक राघास्वामी दयाल घ्पौर सतगुरु के चरनों में दिन २ गहरी होती जावेगी ध्पीौर उनकी मेहर से | एक दिन उसका काम बन जावेगा योनी घुरधाम में पहुंच कर घ्पमर घ्पीर परम ध्पानंद का प्राप्त होगा ॥ र२-कुछ्त जीवाँ का मुनासिब श्पौर लाजिम है जहां तक मुमकिन हे सच्चे प्रेमी यानी शुरुूमुंख का




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