धर्म वर्णन | Dharm Varnan

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Dharm Varnan by आनन्द शंकर - Aanand Shankarमहेंद्र कुमार - Mahendra Kumar

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आनन्द शंकर - Aanand Shankar

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महेंद्र कुमार - Mahendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. ऋण ेद संहिता के देवता ११ जो विशालः ॐच श्रौर बड़े' वायु के मार्ग को तथा उसके ऊपर जो ( देव ) रहते हैं उनको भी जानता है | सुकतु ( अच्छी कृति--प्रयत्न-श्क्ति या कर्म वाला ) धृत সপ वरुण महलों में बेठा है और साम्राज्य करता है। , चां से सब अद्भुत पदार्था को जो निर्मित हो चुके और होने वाले हँ यहे ज्ञानी ( सवज्ञ वरुण॒ ) देखता है । यह सुक्रतु आदित्य हमेशा हमारे लिए अच्छा मार्ग करे, हमारा आयुष्य बदृवि । हिरस्यसय वस्त्र और कवच वर्णने धारण किया है, ओर इसके आसपास इसके स्पश (इत, तेज की किरणों ) बैठी हैं। हमारी वृत्ति-रूपी गायें इसके बाड़ की ओर मुड्े । ये उरुचत्ता ( सवको देखने बाला, विशाल नेत्र बाला ) वरुण को चाहतीं उसी की ओर वापस लौटती हैं | | दे मेधावी ( ज्ञानी, स्॑ज्ञ ) वरुण ! तू श्राकाश चौर प्रथ्वी का राजा है। हमको उत्तर दे | हमारे सबके ऊपर से ऊपर का, वीच का, और नीचे का पाश ( बंध ) खोज्न जिससे हम जिन्दा रहें। हे राजा वरुण-। मिट्टी के घर मेंन जार, दयाकरो, हे सुत्त ! ( सुन्दरः, शुभ--बलवान्‌ राजा) दया कये । . ই वरुण ! हेमने मनुष्य होकर दैवी लोगों के भरति जो ङु दोष किया हो, अज्ञान से तुम्हारा धर्म लोप क्रिया हो इस पाप के लिए हे देव ! तू हमारे ऊपर गुस्सा न होना । हम नित्य भूमि में रहते हें और वरुण हमारा पाश (बन्धन) छोड़ दे | अदिति की गोद में से हम रक्षण माँगते हैं । तुम (देव) हमेशा स्वस्ति के हारा हमारा रक्षण करो। ১৮, >€ ১৫




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