धर्म वर्णन | Dharm Varnan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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आनन्द शंकर - Aanand Shankar
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महेंद्र कुमार - Mahendra Kumar
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). ऋण ेद संहिता के देवता ११
जो विशालः ॐच श्रौर बड़े' वायु के मार्ग को तथा उसके
ऊपर जो ( देव ) रहते हैं उनको भी जानता है |
सुकतु ( अच्छी कृति--प्रयत्न-श्क्ति या कर्म वाला ) धृत
সপ वरुण महलों में बेठा है और साम्राज्य करता है। ,
चां से सब अद्भुत पदार्था को जो निर्मित हो चुके और
होने वाले हँ यहे ज्ञानी ( सवज्ञ वरुण॒ ) देखता है ।
यह सुक्रतु आदित्य हमेशा हमारे लिए अच्छा मार्ग करे,
हमारा आयुष्य बदृवि ।
हिरस्यसय वस्त्र और कवच वर्णने धारण किया है,
ओर इसके आसपास इसके स्पश (इत, तेज की किरणों )
बैठी हैं।
हमारी वृत्ति-रूपी गायें इसके बाड़ की ओर मुड्े । ये उरुचत्ता
( सवको देखने बाला, विशाल नेत्र बाला ) वरुण को चाहतीं
उसी की ओर वापस लौटती हैं | |
दे मेधावी ( ज्ञानी, स्॑ज्ञ ) वरुण ! तू श्राकाश चौर प्रथ्वी
का राजा है। हमको उत्तर दे |
हमारे सबके ऊपर से ऊपर का, वीच का, और नीचे का
पाश ( बंध ) खोज्न जिससे हम जिन्दा रहें।
हे राजा वरुण-। मिट्टी के घर मेंन जार, दयाकरो, हे
सुत्त ! ( सुन्दरः, शुभ--बलवान् राजा) दया कये ।
. ই वरुण ! हेमने मनुष्य होकर दैवी लोगों के भरति जो ङु
दोष किया हो, अज्ञान से तुम्हारा धर्म लोप क्रिया हो इस पाप
के लिए हे देव ! तू हमारे ऊपर गुस्सा न होना ।
हम नित्य भूमि में रहते हें और वरुण हमारा पाश (बन्धन)
छोड़ दे | अदिति की गोद में से हम रक्षण माँगते हैं । तुम (देव)
हमेशा स्वस्ति के हारा हमारा रक्षण करो।
১৮, >€ ১৫
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