हास्य रस | Haasy Ras

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Haasy Ras by जी. पी. श्रीवास्तव - G. P. Shrivastav

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जी. पी. श्रीवास्तव - G. P. Shrivastav

Add Infomation AboutG. P. Shrivastav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ड्ास्य-रस द्के जाता हे कि मुंह सिकोड़े-सिकोड़े हज़रत की राली समभ दी नहीं सिकुड़ गई बल्कि हसनेवाली कमानी सिकुड्कर मुंह. भी थूथन बन गया हे। फिर बेचारे किस मुंह से हास्य का दम भरें ? हास्य बुद्धिमान ज्ञानी श्रौर समभदारों के लिये है क्योंकि इसका घना संबंध दिमारा से दे हृदय से नहीं । जिसकी स्वोपड़ी में दिमारा है बही इसका सज़ा लूटना जानता दे आर बही इसके महत्त्व को सम सकता डे । कुरुचि-पूणण॑ विपय होने से दारय भद्दा या भ डा अलबत्ता कहा जा सकता है मगर इस हालत में भी यह अपना सुधार का सॉाटा हाथ से नहीं छोड़ता । क्योंकि इसका लो श्राधार बुराई दोष श्रुटि इत्यादि हैं जो मानव-जीवन के सुख में खलबली मचाते हैं । जब चोट करता है तब किसी-न-किसी ऐब ही पर चाहे व चरित्र स्वभाव व्यवहार नीति धर्म समाज साहित्य किसी में भी हो । जहाँ प्रत्यक्त रूप में यद कोई सुधार करता हुआ नहीं भी जान पड़ता वहाँ श्रौर कुछ नहीं तो कम-से-कम ख्राली हसाकर स्वास्थ्य को ही लाभ पहुँचाता है। इसीलिये तपेदिक़ के रोगियों को हास्य-रस की पुस्तकें पढ़ने को दी जाती हैं । मानव-जीवन के लिये यह क्या कम उपकार की बात हे? स्पेन के सरवैंटोज़ ने डानक्यूज़ोट की रचना करके योरप-भर के ख्रुदाई-फ्रोजदारों की इस्ती मिटा दी । इंगलेंड के शेक्सपियर ने अपने शाइलाक द्वारा सूदखोरों की हुलिया भिंगाड़ दी । फ्रांस के मौलियर ने श्रपने पेन्क श्रौर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now