ब्रजलोक साहित्य का अध्ययन | Braj Lok Sahitya Ka Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25.22 MB
कुल पष्ठ :
552
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दवा [ नजलोक साहित्य को अध्ययन
परम साहिस्य ( है )
२ लोक-साहित्य-- 1 नागरिक साहित्य ( ४
दर
घर्मगाधा-साहित्य की विशेषताओं पर ऊपर भली प्रकार
विचार हो चुका है । साधारण लोकवात्ता-साहिस्य में हमें लोकफ-बार्ता
के सभी गुण सिलते हैं । इसका आरम्भ भी घसगाधाछ, के साथ ही
मानव की रौशवादस्था सें हुआ होगा, यह बिस्टुस सम्भव ४ कि
पहले घ्मेंगाथा का जन्म हुआ हो, तदनन्तर ब्त गाथाशओ में से
आदि-मानव ब्ही धार्सिक आस्था का असाव होता गया आर थे
गाथायें लोक-चासां में मात्र लोक-साडित्य का रुप श्रदस चने लगीं ।
न,
डक
धमगाथा कर शुलाधमंगाथाओं के मूल के सम्बन्ध मे अभी
तक दो प्रधान मत हैं : एक यढ़ सामना है कि धर्मगाथा सूये च्ौर
चान्थकार के सब्र की प्राकुतिक घटनाओं के झुपप पर बनी है
पहले आदि-मानव-समूद ने प्रकृति के इन दिव्य व्यापार को देखा
च्और इन्हें मूते रूप में शब्द क। अरे साना, झथत्रा इन सूस थिपयों
कर
को शब्द दिये । फिर सप्य पाकर शब्दों से विकार हु शोर उनसे
ब्ार्थ-परिवत्तेन भी होने लगा, इससे प्र्नपि-न्यापारबाती शब्द दिव्यता
अथवा देवत्व छोवक हो उठे । उनमें सैनिक सिद्धास्तों बा था रासाचेश
हो गया । घर्मगाथा की उत्पत्ति का सूल शब्दों का रूपालयार की
नी प्रयोग में निश्ित है । आगे चलकर रूपक का शाव हम हो रखा |
वे ब्वस्थायें भी जिरखा होगयीं जिनसे होकर इस शब्द फा रप्पककतू
प्रयोग हुआ था चर शब्द घर्मगाथा” का आधार बन गए । यथा
में धर्मगाधा भाषा का विकार है, जिसमें वे शब्द यो रूपया ध्यथवा
विशेषशुयत् थे श्रपनी स्ववन्त्र सत्ता अदणु सरने ठागो मै । जोर यह
सन जाया जाता है कि ये कबि के दिये नाम हैं, जिन्होंने शर्ते: शेः
दिपत्व प्राप्त कर लिया है । *
घर्मगाद्ा के मूल के सम्बन्ध में दूदरा मत यद रहा £ कि ये
मनुष्य की असम्य अवस्था सें उत्पन्न हुई है आर इसका सस्वन्थ उस
काल के मलुष्यों के कृपिकर्म तथा प्रननन कर से हैं। कृषि और
प्रजनन करें में जिन भयों और अआशक्ाओं का पद-पद पर उदय
देखो * के संक्चस श्रान साइस श्राय लैंग्विज' पृष्ठ ११
User Reviews
No Reviews | Add Yours...