स्वाहा | Swaha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऋषि, छन्द व देवता : ७
१ পিপিপি
संनिवेश. व प्राचीन के निष्कासन से रूपान्तरता प्राप्तिरूप परिवतन हो जाता है,
उन्हं दशापि प्राण कहते है । भृगु, प्रंगिरा, भ्रत्रि, मरीचि, पृलस्त्य, पुलह, क्रतु,
दक्ष, वसिष्ठ व श्रगस्त्य दरशशाषि प्राण हैं । ये प्राण हिरण््रगभे प्रजापतिप्राण से
उत्पन्न मनुप्राण से उत्पन्न होते हैं तथा सृष्टिजनक अग्निष्वात्तादि सप्त पित॒प्राणों
को उत्पन्न करते हैं । इसी तथ्य का निरूपण' भगवान् मनु ने मनुस्मृति में किया
है। जैसे--
भनोहुरण्यगभेस्य ये मरीच्यादयः सुताः।
` तेषामृषीणामाचानां पुत्राः पितृगणाः स्मृताः ॥
थे प्राण अनेक प्रकार के हैं, अतएव विरूपास इद् ऋषयः' (ऋ. ८।२।१)
म ऋषियों के नानारूपत्व का उल्लेख है. 1-.
सृष्टिप्रवत्तेक अंगिरा, वसिष्ठ, अगस्त्य श्रादि प्राण आ्राध्यात्मिक, आधि-
भौतिक व आधिदेविक भेंद से तीन. प्रकार के हैं। श्रध्यात्म में ये प्राण मत् को
केन्द्र बनाकर सारे शरीर में व्याप्त रहते हैं। और इन आध्यात्मिक ऋषि
: प्राणों से अध्यात्म में भिन्न-भिन्न भावों की उत्पत्ति होती है ।
अध्यात्म में मरीच्रिप्राण से संभूतिधमं उत्पच्च होता है, जो कि सन्तानादि
संसारधर्मों की प्रवृत्ति में कारण है। अंगिरा प्राण स्मृति का जनक है । जिस
` पदार्थं से संबंधित अंगिरा प्राण शरीर में है, उसी विषय की स्मृति होती है अन्य
की नहीं। अतन्निप्राण से गुणों में दोषदृष्टि का ग्रभावरूप अ्रवतसयागुण ভত্দল
होता है | भुगुप्राण से ख्याति उत्पन्न होती है। वसिष्ठप्राण से बलविशेषरूप
ऊर्जा उत्पन्न होती है। ऋतुप्राण से व्यक्तिविशेष या वस्तुविशेष के प्रति
प्रवणतारूप संनति-गुण उत्पन्न होता है, पुलस्त्य प्राण से प्रीति, पुलहप्राण से
` क्षमा, दक्षप्राण से वाक्, बुद्धि तथा शरीर के कार्यो की भ्रारम्भक उत्साहुविशेष-
` रूप दक्षता उत्पन्न होती है। तथा नारदप्राण से श्रद्धाविरुदढा कलहकारिणी
प्रवृत्ति उत्पन्न होती है। इस प्रकार आध्यात्मिक मरीच्यादिप्राण शरीर में
. ` विभिन्न वृत्तियों या धर्मो को उत्पन्न करते हैं ।
म्राधिदेवत मे ये मरीच्यादि प्राग श्राधिदेविक, हिरण्यगभे मण्डल के मनू-
तत्त्व को केन्द्रं बनाकर ररिमरूप से इतस्ततः व्याप्त रहते हँ । हिरण्यगभं से
, सम्बन्धित ये मानवप्राण दश भागों मे विभक्त होकर विराट् पुरुष के संपादक
बनते ह । श्रधिभूतमेंये प्राण भूताग्नि से उपलक्षित श्रगिरा श्रग्निकोश्राधार
` बनाकर आधिभौतिक पदार्थो भे ` व्याप्त . रहते हँ । प्राधिमौतिक पदार्थो में
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