स्वाहा | Swaha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Swaha  by सुरजनदास स्वामी - Surjandas Swami

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सुरजनदास स्वामी - Surjandas Swami

Add Infomation AboutSurjandas Swami

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ऋषि, छन्द व देवता : ७ १ পিপিপি संनिवेश. व प्राचीन के निष्कासन से रूपान्तरता प्राप्तिरूप परिवतन हो जाता है, उन्हं दशापि प्राण कहते है । भृगु, प्रंगिरा, भ्रत्रि, मरीचि, पृलस्त्य, पुलह, क्रतु, दक्ष, वसिष्ठ व श्रगस्त्य दरशशाषि प्राण हैं । ये प्राण हिरण््रगभे प्रजापतिप्राण से उत्पन्न मनुप्राण से उत्पन्न होते हैं तथा सृष्टिजनक अग्निष्वात्तादि सप्त पित॒प्राणों को उत्पन्न करते हैं । इसी तथ्य का निरूपण' भगवान्‌ मनु ने मनुस्मृति में किया है। जैसे-- भनोहुरण्यगभेस्य ये मरीच्यादयः सुताः। ` तेषामृषीणामाचानां पुत्राः पितृगणाः स्मृताः ॥ थे प्राण अनेक प्रकार के हैं, अतएव विरूपास इद्‌ ऋषयः' (ऋ. ८।२।१) म ऋषियों के नानारूपत्व का उल्लेख है. 1-. सृष्टिप्रवत्तेक अंगिरा, वसिष्ठ, अगस्त्य श्रादि प्राण आ्राध्यात्मिक, आधि- भौतिक व आधिदेविक भेंद से तीन. प्रकार के हैं। श्रध्यात्म में ये प्राण मत् को केन्द्र बनाकर सारे शरीर में व्याप्त रहते हैं। और इन आध्यात्मिक ऋषि : प्राणों से अध्यात्म में भिन्न-भिन्न भावों की उत्पत्ति होती है । अध्यात्म में मरीच्रिप्राण से संभूतिधमं उत्पच्च होता है, जो कि सन्तानादि संसारधर्मों की प्रवृत्ति में कारण है। अंगिरा प्राण स्मृति का जनक है । जिस ` पदार्थं से संबंधित अंगिरा प्राण शरीर में है, उसी विषय की स्मृति होती है अन्य की नहीं। अतन्निप्राण से गुणों में दोषदृष्टि का ग्रभावरूप अ्रवतसयागुण ভত্দল होता है | भुगुप्राण से ख्याति उत्पन्न होती है। वसिष्ठप्राण से बलविशेषरूप ऊर्जा उत्पन्न होती है। ऋतुप्राण से व्यक्तिविशेष या वस्तुविशेष के प्रति प्रवणतारूप संनति-गुण उत्पन्न होता है, पुलस्त्य प्राण से प्रीति, पुलहप्राण से ` क्षमा, दक्षप्राण से वाक्‌, बुद्धि तथा शरीर के कार्यो की भ्रारम्भक उत्साहुविशेष- ` रूप दक्षता उत्पन्न होती है। तथा नारदप्राण से श्रद्धाविरुदढा कलहकारिणी प्रवृत्ति उत्पन्न होती है। इस प्रकार आध्यात्मिक मरीच्यादिप्राण शरीर में . ` विभिन्न वृत्तियों या धर्मो को उत्पन्न करते हैं । म्राधिदेवत मे ये मरीच्यादि प्राग श्राधिदेविक, हिरण्यगभे मण्डल के मनू- तत्त्व को केन्द्रं बनाकर ररिमरूप से इतस्ततः व्याप्त रहते हँ । हिरण्यगभं से , सम्बन्धित ये मानवप्राण दश भागों मे विभक्त होकर विराट्‌ पुरुष के संपादक बनते ह । श्रधिभूतमेंये प्राण भूताग्नि से उपलक्षित श्रगिरा श्रग्निकोश्राधार ` बनाकर आधिभौतिक पदार्थो भे ` व्याप्त . रहते हँ । प्राधिमौतिक पदार्थो में




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now