दानविचार- समीक्षा | Danavichar Samiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.81 MB
कुल पष्ठ :
101
श्रेणी :
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No Information available about पं. परमेष्ठी दास - Pt. Parameshthi Das
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पेसे लोग उन्हें पढ़ते हैं, प्रभावित होते हैं, और
घोखां. खाते हैं चंकि ऐसा होता है, इसी लिये
उनकी समोत्ता ओर झआनोचता आदि जिखें को
अआवश्यकता होती है। ऐपीं समोक्ताएं अंततः स्तयं में
सोत्विक न हों, पर उतको उपयोगिता अवश्य है ।
वे भी अपने ढँंग से भला करती हैं ।
परमेछ्ीदास जीने इस अप्रिय, अस्वाद शोर क्थचिन मेंले
कामका दायित्व श्वने कंचां लिया है । जब मंत्र अपने ओर
उपजाया जाय तत्र उस का लेकर फरु देव का काम करने
बाला लागों के घन्यवाद का पात्र है ।
घ्म पुरुष का परम इए है। जैसे कुतुबनुमे की सूइे
दिन-रात-इर घड़ी उत्तर की शोर रहता हैं, इसा तर हर
समय, हर काम में, सनको घर्म को आर दस रक्खें । शेष
ओर आग बहन कुद है, सब कुछ है,--पर, घर्म तो उसी
एक -उत्तर दिशा की--झोर है। हम नीनों-चारों श्ोर फैले
हुए क्रिया-कलापक जालमें न मरसा जाव; असम्प, अडिंग,
साते-जागते उसी आर देखते रहें, यड मेरी प्राथना है ।
नजो हमारे सदावुभूति आर हमारे ज्ञानके कुत्र को फै ताये
वहीं हम पढ़े, बडी सुन, शेष को अपने निकट अत पढ़े!
अनसुन' हम बनादे । सो बातों की यड़ी एक बात है ।
ओर यदि 'दानविचार' पुस्तक हमारे बोच में प्रेम पैदा नह
करती, विभेर उत्पन्न करतीं है, ता हम समभ ले वर जैसे
छपी हा नहों ।
पहाड़ी घीरज दिल्ली ।
२९ अअप्रेल ३३ --जेनेन्द्रकुमार
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