अष्टाग योग प्रकाश | Ashatagam Yoga Prakash
श्रेणी : योग / Yoga, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.66 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रिय हो । वह कच्ादि दिछा, चैठसर प्राणायाम और
धत्याद्र का संयम करे ।
जिस सिधि से सुखपूर्वेक बैठकर घाणायामादि क्रिया
की जा सके, फाई नस दवमे न पात्र और चित्त झे
अनस्थिरता न हों उसी स्थिरता से चैठना चाहिये ।
बैठने की सर्वोत्तम विधि यद्द है कि दाहिने पग को पएझे
याम ओर की कटिमें लग जाजें ओर पंजा कटि से याश्र
रहे । वाम पग का पंज्ञा दाहिने पग की गाँठ के नीय
हों झर अगुलियाँ वार निकली हों । दोनों हाथों का
दथेली ऊपर के और उमका पृ्रभाय व्यपनी सार को
गाँठों पर हो । दाहिने हाँथ की तजेती के ऊपर का भांग
अपने अंगूठे के मध्यभाग में मिला हो | घाम हाथ को
तर्जनी का ऊपर का भाग अपने अंगूठे के ऊपर के भाग
में मिला हो 1 झोप दोनों हाथों की अंगूलियाँ परस्पर
मिकी, सीधी भीर किच्बित् नीचे की सार इडुकी हो ।
सब अड़ कड़े आऔीर सीधे दों 1 आँखें वन्द हो ।
““ तने इंद्धा नशि धघाता ।
प्रयत्न दैथिर्या नन्त समापत्त्तिभ्यास्ू । या. द. 17”
इस घ्रकार बैठकर पाणायाम और प्रत्यादार करने
से चारीर के सब भड्ड, मत्यह् ओर नस-नाइ़ियाँ स्थिर
श्हतों हैं । आालर्स्य नहीं आता और विन दान्त रहते
छू। जब योगी का मन उपासन से पूर्णेरूप से लय जाता
छे तब आसन की सिखि रवतः दो जाती है ।
नजर
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