संगीताजलि भाग - 2 | Sangeetanjali Part 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
85.42 MB
कुल पष्ठ :
233
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रण)...
दे इन सब भावोत्पादक क्रियाओं को कंठ सुविधा से उपजा सके, इसीलिये गायक को स्वाधीनकंठ बनना
......... चाहिए, झऔर स्वाधीनकंठ बनने के लिये नित्यप्रति का साधन झावश्यक है ।
स्व॒र-साधना
न यूरोप में ए010० 0पा007/6 पर बहुत जोर दिया गया हैं, और उस पर कई अन्थ लिखें गए हैं ।
.......... किन्तु उन लोगों की स्वर लगाने की शैली, कंठ पर प्रभुत्व पाने की क्रियाएँ, श्वासोच्छूवास की प्रक्रियाएँ इत्यादि
.... संभवतः भारतीय संगीतोपयोगी कंठ के लिये उपयुक्त होंगी या नहीं, इसमें मतमेद को झवकाश है। किन्तु
_.. पृण॑ठ्ट एप्प के लिये भारतीय परंपरा है ही नहीं, ऐसा कहने वाले वास्तविक सत्य की उपेक्षा करते
यहाँ पर एक स्वानुभव उद्धत करूँ तो झनुचित न होगा | हि
मेरा बाल--कंठ झतीव मधुर था और तीनों सप्तकों में सुविधा से घूमता था। किन्तु यौवन खाते ही...
_ फूटे मटके के सदश मेरा कंठ फट गया । वह झावाज़ इतना कणकटु था कि मुझे स्वयं ही उस पर लजा झाती
थी। में कतई गाना छोड़कर सदंग, इसराज और हामोनियम पर रियाज करने लगा । किन्तु साथ ही मेरे गुरुदेव
पं० विष्णुदिगस्बरजी पत्ुस्कर की. झाज्ञाजुसार ब्राह्म मुहूर्त में प्रात: चार बजे तानपुरा लेकर उनके सोने के
कमरे के बाहर बेठकर उनके बताये हुए मागें से मन्द्र साधना करता रहा । बीच बीच में वे मागंदशंक सूचना देते
रहते थे और में उस पर अमल करता था । आज मेरे कंठ में यदि कुछ है तो वह उसी साधना का परिणाम है।
वह मंद्र-साधना क्या थी ?--
प्रात:काल सूयोद्य के पूव पने स्वर का जो षद्ज हो, उस पद्ज से मन्द्र में नीचे से नीचे जहाँ तक.
झ्ावाज़ जा सके, वहाँ पर कणठ स्थिर करके दीघ समय तक उस स्वर का प्ल्युतोघ्नार किया जाए। मिन्न सिन्न
शारीरिक शक्ति के झनुसार तथा कंठस्थित ध्वन्युत्पादक नाड़ियों ( ००६1 ०0०68 ) की रचनावुसार आरंभ
का स्वर सिन्न भिन्न हो सकता दैं। सामान्य रूप से झपने मध्य षद्ज से कम से कम पाँच स्वर मंद्र में झावाज
जा सके ओर अपने तार षड्ज से कम से कम पाँच स्वर ऊपर झावाज़ जां सके, ऐसी मर्यादा बॉघिकर ही मध्य...
पद्ज़ निश्चित किया जाए । ढाले स्वर से गानेवाले कुछ लोग उँचे स्वरवाले झपने शिष्यों को भी ढाले स्वर से
गाने के लिये बाध्य करते हैं, ओर इस प्रकार स्वाभाविक प्रकृति बिगड़ने से मूल्यवाच् झावाज़ नष्ट हो जाता है।
... ऐसी सभी दृष्टियों को ध्यान में रखकर ही मंद्र साधना की जाए।
एक झपने मध्य षद्ज के नीचे जिनका स्वर मंद्र बदूज ( खरज ) को लगा सकता हो, वे कम से कम. की
... पंद्रह मिनट झौर झधिक से छधिक झाधा घंटा तक मंद्र के पर कणठ को स्थिर करें । कार आकार; रे
कप इंकार, उकार, आकार इत्यादि स्वरों से उसका उच्चार किया जाए । उकारादि सिन्न भिन्न उच्चारों के समय कंठ
............ में कुछ परिवतन होते हैं, जिनके फेफड़ों पर, श्वासनली पर एवं उद्र पर मिन्न भिन्न परिणाम होते हैं। षद्ज के
हा हक के बाद कम से कम पाँच मिनट झ्ौर झधिक से अधिक दस मिनट तक ऋषभ को स्थिर करें । उसी क्रम से...
मध्यम, घेवत, निषाद को एक एक करके स्थिर करते हुए मध्य षड्ज तक पहुँचा जाए । इसके बादू--
।........... है रे; १ ३ के टू झादिक मात्राओं से निबद्ध तानों का अभ्यास किया जाए आर मिन्न मिन्न रागों में भिन्न...
कलर पुल मिन्न झलंकारों को कंठ में बिठाया जाए । तान-क्रिया के भ्यास के समय रसचि आर समयानुसार .
........ मिन मिन्न रागों का उपयोग किया जाए! कारांदि स्वर-समूहों का बदजादि संगीत के स्वरों के साथ उच्चार
.!............... करने के अभ्यास से नाद क्री झामिव्यंजना करने की क्षमता आ जाती है। भर
न दे गन ं मन्द्र साथना के पश्चात् ्यौर गाने के के बाद विद्यार्थी यह सदेव ध्यान रखें कि तत्काल
डर दे ताल मिश्री की एक डली मुँद में डाल ली जाए। इससे कंठ ओर ध्वन्युत्पादक नाड़ियाँ ( ०081
हर हुयी ं खुश्की पेदा हुई होगी, वे स्निग्य और तर हो जाएँगी । और पन्द्रद बीस मिनट के पश्चात्...
मच दा घी झ्ौर मिश्री डाल कर पंचन की शक्ति अनुसार पी जाएँ। संभव होती...
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