ध्यान योग प्रकाश | Dhyan yog Prakash

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Dhyan yog Prakash by श्री मद्योगिन लक्षमण आनंद - Shree Madyoginlaxman Aanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रु द खष्टिकर्ता, श्रजन्मा, सत्यस्वरूप श्रौर सन द्धू शत्यन्त.प्रेस श्रीर भक्तिभाव से विनय पूर्वक गए न या नियम जो वेद उसका सारभूत तत्व श्र्थ जो परमात्मा उस- की प्राप्ति कराने घालो श्र ध्यानरूपी सरल विधि से सिद्ध होने वाली जो योगवियया है उसका मैं चर्णन करता हा । परत- पच 'ाप मेरे सहायक हजिये । ही परमात्सा उसकी प्राप्ति कराने चाली श्र ध्यान रूपी सरल विधि से सिंद होने वाली जो योग विद्या है. उसका मैं चर्सन करता ड श्तपच शाप मेरे सदायक ट्रजिये 1 ॥ न्छोक ॥ ा 'सर्वात्मा सच्चिदानन्दोब्नन्तो यो न्यायकृच्छुचिः । भु्रत्तपां सददयो नो दंयालुश सर्वशक्तिपान_! २९ १ ड पूच्चा० चिंण्यु भी झार्थ--हे सब के झन्तयर्पामी श्ात्मा परमात्मन्‌ | झाप सत्‌ चित सर श्रानन्द्स्थरूप हैं. तथा छानन्त, स्यायकारी सिर्मल [सदा, पवि्र]दयालु श्र सर्वसामध्य युक्त हैं, इत्यादि झनन्त युगाविशेषविशिछट जो 'झाप है सो मेरे सर्वथा सद्दायव इजित्र जिससे कि में इस पुरुतक फे चनाने के निंमित्त समर्थ हो जाउँँ । भा दो रेमू शननों मित्र: शे वरुण: शननों भवत्वय्यंगो । .शत्नः इन्द्रो छूदस्पतिः शननो विस्खथुरुरक्रम! ॥, नमो घर हाणे नमस्ते चायों त्वमेव मत्यक्तें त्रह्मासि । स्वासेत्र 'मत्पेों: न्रह्म चदिष्यामि । ऋतं . बदिष्यामिं |. संत्य॑ बदिष्यामि !. 'तन्मामवद् | तद्क्तारमवद् अवढ माय अत बक्तारमू ॥ , आओ देसू शांति: शांति शांति ॥।




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