राग - बिराग की सरल व्याख्या | Raaga - Viraga Kii Saral Vyaakhya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.38 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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No Information available about दुर्गाशंकर मिश्र - Durgashanker Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वर निद्रा में लीन हो गयी पर प्रगाढ़ निद्दा के बीच भी वह प्रिय को भुला नहीं पाई । इस प्रकार जाग्रतावस्था का स्मरण और चिंतन गम्भीर निद्रा के मध्य स्वप्न बनकर आया । यहाँ यह स्मरणीय है कि प्रिय के बिना उसका मुख अविकसित अर्थात खिला हुआ नहीं था और कवि ने भी उसे कली कहा है । थ ही टूर परदेश स्थित नायक मलयानिल भी अपनी प्रिया का वियोग अत्यन्त कठिनाई से झल रहा था । ं कवि कह रहा है कि वह वसंत की राज्ञी थी और चारों ओर कादकता छायी थी जिसके कारण विरह का उद्दीपन रह-रह कर बढ़ रहा था । साथ ही मलयानिल की प्रिया उसे स्मरण कर सो गयी. और स्वप्न में भी वह उसी की क्रिया कलापों तथा मधुर प्रेरणाभों को देख रही थी । इस प्रकार एक ओर अपने ही निवास में प्रोषित पति का नायिका परदेशस्थित प्रियतम को स्मरण कंर रही थी और दूसरी ओर परदेश स्थित प्रियतम भी विरह विकल हो उठा था। धन टिप्पणी--इन पंक्तियों में पवन को नायक और जुह्दी की कली को नायिका के रूप में अंकित कर कवि ने प्राकृतिक उपादानों के माध्यम से भौतिकजगत में रंगरूपों एवं मानवीय क्रिया व्यापारो का सजीव चित्रण किया है । यह अवतरण छायावादी काव्यशिह्प का सुन्दर उदाहरण है ओर कवि ने जुही की कली. को अमल . कोमल तनु तरुणी तथा पवन को विरह मधुर मलयानिल कहकर दोनों का सानवीकरण किया है । साथ ही यह पद्यांश तत्सम समास- निष्ठ कोमलकांत पदावली से युक्त है और इसमें माधुयं गुण की छदा भी विद्यमान है तथा साथंक एवं साभिप्राय शब्द योजना के भी दर्शन होते हैं । उदाहरणाथं निशा शब्द के प्रयोग से अद्धरात्रि और तीसरे पहर के बीच का. वातावरण मुत्तिमंत हो उठता है तथा पत्नांक शब्द तरुणी नायिका जुही की कली को कोमलता और स्निग्धता को एकदम से उभारकर रख देता हैं। साथ ही सोती थी दग बन्द किये और प्रिया संग छोड आदि के प्रयोग से चाटकीयता और गत्यात्मक बिम्ब की भी सृष्टि हो गई है तथा वातावरणं
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