जातक भाग - 2 | Jaatak Part - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
245.69 MB
कुल पष्ठ :
536
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय प्च्ठ
१५४, उरगजातक.......... ... कि न १६८
. (बोधघिसत्त्व ने गरुड़ से नाग की रक्षा की ।)
१५५, ग्रे जातक के के के के थ कक के के के श्र
(छींक आने पर “जीवें' और “जीओ' कहने की प्रथा कंसे
चली।)
१५६. श्रलीनचित्त जातक . . कक कर “कद की १७६
(बढ़इयों ने हाथी के पाँव का काँटा निकाला । कृतज्ञ हाथी
पहले स्वयं उनकी सेवा करता रहा। बाद में अपना लड़का दे
दिया। उस हाथी-बच्चे ने बहुतों को उपकृत किया। )
१५७, गण जातक दा '. ० सका ् श्८्रे
(दलदल में फँसे सिंह को सियार ने बाहर निकाला । सिंह
अन्त तक कृतज्ञ रहा। )
१५८. सुहनु जातक भ्क न क्+ कं १९१
(लोभी राजा चाहता था कि व्यापारियों के घोड़े उसे कम मूल्य
में मिल जायें । बोधिसत्त्व ने उसकी योजना विफल कर दी।)
१५४. सोर जातक... दरार री, ना :ड्र५
. (रानी ने सुनहरे रंग के मोर के लिए जान दे दी। राजा ने.
सोने के पट्टे पर लिखवाया--जो सुनहरे मोर का मांस ख ते हैं,
वे अजुर अमर हो जाते हैं। मोर ने पूछा--मैं तो मरूँगा, मेरा.
मांस खाने वाले क्यों. नहीं ? )
१६०. विनीलक जातक... « झ कक ««. २०२
(हंस ने कौवी के साथ सहवास किया । विनीलक पैदा हुआ।
हंस उसे अपने, बच्चों के ,समान' रखना चाहता था किन्तुं वह
अयोग्य-सिंद्ध हुआ।)
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