जातक भाग - 2 | Jaatak Part - 2

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Jaatak Part - 2 by भदन्त आनंद कोसल्यानन- Bhadant Aanand koslyanan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय प्च्ठ १५४, उरगजातक.......... ... कि न १६८ . (बोधघिसत्त्व ने गरुड़ से नाग की रक्षा की ।) १५५, ग्रे जातक के के के के थ कक के के के श्र (छींक आने पर “जीवें' और “जीओ' कहने की प्रथा कंसे चली।) १५६. श्रलीनचित्त जातक . . कक कर “कद की १७६ (बढ़इयों ने हाथी के पाँव का काँटा निकाला । कृतज्ञ हाथी पहले स्वयं उनकी सेवा करता रहा। बाद में अपना लड़का दे दिया। उस हाथी-बच्चे ने बहुतों को उपकृत किया। ) १५७, गण जातक दा '. ० सका ् श्८्रे (दलदल में फँसे सिंह को सियार ने बाहर निकाला । सिंह अन्त तक कृतज्ञ रहा। ) १५८. सुहनु जातक भ्क न क्+ कं १९१ (लोभी राजा चाहता था कि व्यापारियों के घोड़े उसे कम मूल्य में मिल जायें । बोधिसत्त्व ने उसकी योजना विफल कर दी।) १५४. सोर जातक... दरार री, ना :ड्र५ . (रानी ने सुनहरे रंग के मोर के लिए जान दे दी। राजा ने. सोने के पट्टे पर लिखवाया--जो सुनहरे मोर का मांस ख ते हैं, वे अजुर अमर हो जाते हैं। मोर ने पूछा--मैं तो मरूँगा, मेरा. मांस खाने वाले क्यों. नहीं ? ) १६०. विनीलक जातक... « झ कक ««. २०२ (हंस ने कौवी के साथ सहवास किया । विनीलक पैदा हुआ। हंस उसे अपने, बच्चों के ,समान' रखना चाहता था किन्तुं वह अयोग्य-सिंद्ध हुआ।)




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