श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड | Shree Ramcharitmanas Uttarkand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शुद् के रेउसचरितमानस कै ध्वजा और पताकाएँ. ऊायी |] है || बीधीं लफर इुगघ, सिंचाई [ नमभनि रेखि बहु चौक बुराई ॥ पागा भगत खुबंगछ साजे । इरवि नगर निलान बहु जजि ॥ हे । आन चहुतेसे डंके बजने लगे || हे || करत भह तहूँ नारि निकनरि करहीं । देहिं असीस इरण उर भरहीं ॥ कथन यार आारतीं नाना । जुबती से करहिं छुम गागा मे हे ! लियाँ जहाँ-तहाँ निछावर कर रही हैं; और ६५१में हर्पित होकर आशीर्वाद दे हैं। बहुत-सी धुवती [ सौभाग्ववती ] खियाँ शोनेके थाम अनेकों प्रकुरती आर सजकर मज्ञर्भान कर रही हैं ॥ ३ |) कर कर भारती जारतिद्र के | रखुकुर्ड कमक विपिन दिनकर के ॥ पुर सोमा संपत्ति कर्थाने | निगम सेप . सारण घलाना ॥| है ' वे आर्थिहर ( दुःखोंको इरनेवाजे ) और चूर्घकुछलमी कमख्पनफि प्रफुलित का चाजे सूर्य श्रीयमजीकी आरती कर रही हैं। नमरकी शोभा? सम्पत्ति और कद्वांग बेद) शेषणी और शरत्तीजी वर्णन करते हैं. ॥ ४ ॥ 3४ यह चरित ऐेखि ८गिरद्ीं । उन। तांधु शुन नर फिमि कही ॥ ' | परन्यु वे भी यद चरिन देखकर ठगेन्से रह जाये हैं ( सग्मित हो ६ते हैं , हू शिवणी कहते हैं. ] हे उस! ! तत्र मजा मघुष्ध उनके युणोंको वैसे कह सकते हैं है ॥' दो०--नारि डुर्ुदिनों बल सर रघुपति बिंरह दिमेल | अस्त भेपे बिगसत मई निरखि राम सकल ॥ ९(क)। लियाँ कुमदिनी हैं; अवोध्य! शंसोपर है और श्रीखुनायजीका विरई ख्व है [.' (रह-सूयके ताप वे बुरा गयी थीं ]। मब ४ पिरइर्पी सूर्थके अरा होने म््रीरामरूपी टन निस्खकर वे खि७ उरी ॥ ९(क) ॥ दोड्टि सगुन खुम विनिधि विधि चाजहिं भगत निलान पुर चर चार, साथ पारि सघन जे भगवान ॥ ९. ( ख, अनेक प्रकरके झुम कुल हो रे हैं; आकाश नगाढ़े बज रहे हैं । नग युरुपों और स्रियोकी सनाथ ( दर्नद्वारा झुठाथं ) करके भगवान, श्रीरामचतणी मै को बे ॥ ९ ( ख जि चौ०्-अभु जानी केकडे रुमानी । बने पाए ग्रे भवानी है ताहि अबोधि बहुत शुर्ख दीच्द्दा | जुर्नि निज सिवन पघनें हरिकीन्हा 1 [ शिवजी कहे हैं... ] दे भवानी ! प्रशुने जान [रिया कि माता फेकेदी वि




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