श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड | Shree Ramcharitmanas Uttarkand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.34 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शुद् के रेउसचरितमानस कै
ध्वजा और पताकाएँ. ऊायी |] है ||
बीधीं लफर इुगघ, सिंचाई [ नमभनि रेखि बहु चौक बुराई ॥
पागा भगत खुबंगछ साजे । इरवि नगर निलान बहु जजि ॥ हे ।
आन
चहुतेसे डंके बजने लगे || हे || करत
भह तहूँ नारि निकनरि करहीं । देहिं असीस इरण उर भरहीं ॥
कथन यार आारतीं नाना । जुबती से करहिं छुम गागा मे हे !
लियाँ जहाँ-तहाँ निछावर कर रही हैं; और ६५१में हर्पित होकर आशीर्वाद दे
हैं। बहुत-सी धुवती [ सौभाग्ववती ] खियाँ शोनेके थाम अनेकों प्रकुरती आर
सजकर मज्ञर्भान कर रही हैं ॥ ३ |) कर
कर भारती जारतिद्र के | रखुकुर्ड कमक विपिन दिनकर के ॥
पुर सोमा संपत्ति कर्थाने | निगम सेप . सारण घलाना ॥| है '
वे आर्थिहर ( दुःखोंको इरनेवाजे ) और चूर्घकुछलमी कमख्पनफि प्रफुलित का
चाजे सूर्य श्रीयमजीकी आरती कर रही हैं। नमरकी शोभा? सम्पत्ति और कद्वांग
बेद) शेषणी और शरत्तीजी वर्णन करते हैं. ॥ ४ ॥
3४ यह चरित ऐेखि ८गिरद्ीं । उन। तांधु शुन नर फिमि कही ॥ ' |
परन्यु वे भी यद चरिन देखकर ठगेन्से रह जाये हैं ( सग्मित हो ६ते हैं ,
हू शिवणी कहते हैं. ] हे उस! ! तत्र मजा मघुष्ध उनके युणोंको वैसे कह सकते हैं है ॥'
दो०--नारि डुर्ुदिनों बल सर रघुपति बिंरह दिमेल |
अस्त भेपे बिगसत मई निरखि राम सकल ॥ ९(क)।
लियाँ कुमदिनी हैं; अवोध्य! शंसोपर है और श्रीखुनायजीका विरई ख्व है [.'
(रह-सूयके ताप वे बुरा गयी थीं ]। मब ४ पिरइर्पी सूर्थके अरा होने
म््रीरामरूपी टन निस्खकर वे खि७ उरी ॥ ९(क) ॥
दोड्टि सगुन खुम विनिधि विधि चाजहिं भगत निलान
पुर चर चार, साथ पारि सघन जे भगवान ॥ ९. ( ख,
अनेक प्रकरके झुम कुल हो रे हैं; आकाश नगाढ़े बज रहे हैं । नग
युरुपों और स्रियोकी सनाथ ( दर्नद्वारा झुठाथं ) करके भगवान, श्रीरामचतणी मै
को बे ॥ ९ ( ख जि
चौ०्-अभु जानी केकडे रुमानी । बने पाए ग्रे भवानी है
ताहि अबोधि बहुत शुर्ख दीच्द्दा | जुर्नि निज सिवन पघनें हरिकीन्हा 1
[ शिवजी कहे हैं... ] दे भवानी ! प्रशुने जान [रिया कि माता फेकेदी वि
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