न्याय प्रकाश | Nyaaya Prakash

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Nyaaya Prakash by महामहोपाध्याय गंगानाथ झा - Mahamahopadhyaya Ganganath Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शूट न्याय काश | है। इस के बाद जब हम किसी जगह पर छूआं देखते है तो इस देखने का हमारे मन में इस प्रकार होता हे- इस जगह घूआं है । इसी को बिडट्ि कहते दे--अथात जहां पर लिंग है--धूपएं को देखते ही पहला जो व्यातति ज्ञान था बच मन में झाजाता है । ये दोनों ज्ञान मिल कर मेरे मन में इस प्रकार मभासित होते है-- जिस घू्एं के साथ साथ हरदम हमने आग पाई है उप्त घूर को मैं यहां देख रहा हूं । इसा को परामधो झ् ज्ञान वा व्यापघ्ि विशिष्ट पक्न घ्मता ज्ञान कहते है 1 इसी के झवन्तर यद्द ज्ञान उत्पन्न होता हे कि इस जगइई पर झाग है । झनुमान की सीद्ियां इस प्रकार होती है । १ जहां घूआं है तहां आग है व्यांतति | ्‌ २ यहां पर घूआं है पक्तता कि ३ यहां पर झाग हैं अचुमिति । परन्तु नेयाधिकों के मत से यह प्रकार खुब ठीक नहीं है । यद्यपि अपन मतलब के लिये यह क्रम ठीक हो थी सकता हे पर दूसरों के मन में ठाक तरह से ज्ञान करांन के लिए यह प्रकार ठीक नहीं दे । इस से अनुमान का खास कर पराथे दूसरों के बास्ते झचुमान का पांच खंड कहा हे । वे पांच खंड अवयव कहलाते हे । ये अझवयव यों हैं । १ ब्रातिज्ञा--साध्य का निर्देश -झजुमान खे जो बात सिद्ध करना है उसका वशान जिस वाक्य में हो । जैसे-- यहां पर आग है सू. १. १ इ३ । हि २ हेतु-जिस निशान से वात सबूत करनी दो उस निशान की सूचना जिस वाक्य ले हो-जेसे- क्योंकि यहां छूर्मा है । सू- १. १. ३४ । -३ उदाह्रण--पां्ले जहाँ पर सबूत करनेवाठी वस्तु बतलायें हुए निशान के साथ देखी गईं है सो जिस वाक्य खा बतलाया जाय । जैसे जददां जहां घूआं रहता हैं तहां तहां झाग रहता दू। जस-रखाइ घर मे । सू. १. १८ ३६ गे ४ उपनय-फ्रहा हुआ निशान यहां पर . हे इस बात का




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