सारबचन राधास्वामी नसर यानी वार्तिक | Sarbachan Radhaswami Nasar Yani Vartik

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Sarbachan Radhaswami Nasaryani Vartik by राधास्वामी ट्रस्ट - Radhaswami Trust

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सार बचन राघास्वासी बातिक प १३ सुरत उतरी थी अर इसके नीचे ज़ितने व्पस्थान हैं वे सब सुरत के उतार के है और तब जीवात्मा याने सुरत या रूह इसे जिस्स याने देह से सह्तसदलब्ंबल के नीचे ठह्री हुददे है शरीर वहाँ से इसकी | रोशनी त्ोर ताकत तसास जिस्स से उतर कर फेलकर सन इंदियाँ के | द्वारे कुल जिस्सानी मोर नफ़सानी याने | स्थल तर सूदम कारज दे रही है ॥ ८-सन दो हैं उक दब्रह्मांडी तौर दूसरा पिंडी । ब्रह्मांडी मन का स्थान त्रिकटी तौर सह्तसदलब्ँवल में है अर ः. | इसी को ब्रह्म ्ौर परम इश्वर और परस, अर खदा कहते अपर पिंडी सन का. स्थान नेत्रोँ के 1 पीछे घ्पौर हिरदय में है। यक्ी सन सुरत | की सदद से. कुल कारोबार . दुनिया | का कर रहा हे । सुरत याने रूह को




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