जीवन के अंचल से | Jeevan Ke Anchal Se

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Jeevan Ke Anchal Se by लीलावती मुंशी - Lilavati Munshiशिवचन्द्र नागर - Shivchandra Nagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पेसा रै? १७ किसी को कुछ पता नहीं था। और इससे ण्ठ प्रकार के रहस्य ओर कोतृहल का वातावरण उस साधु के चारो ओर पैदा हों गया था | सब उसकी बात धीमी आवाज में करते थे | सब उसकी ओर भय, श्रावं ओर प्रशंसा की दृष्टि से देखते थे | सब को एसा विश्वास हो गया था, कि इसके शुभागमन सेगाँवमे सुख की वाढ़ झा गई हैं| गाँव के लोग इसके भरणु-पोषण के लिए पैसा एकत्रित करते थे । यात्री उसकी बाल सुन कर, उसे अनेक वस्तुएं दें जाते थे। उसके द्वार पर लोग चुपचाप सामान रख आते थे। इस साधु के जीवन के पॉच वर्ष इसी प्रकार बीत गए। इसने खेत के थोड़े से भाग में बाड़ी लगा ली थी, और कुछ पेड उगा लिये थे। इसकी मोपड़ी पेड़ों के केंज मे से बहुत थोड़ी-सी ही वाहर दिखाई देती थी | इस भोंपड़ी को किसी ने अंदर से नहीं देखा था | यदि वह बहाँन भी होता, तब भी उसके अंदर जाने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी। यह साधु कभी को श्रपन दुद-मरे गानों से रात्रि की লিলভ্নলা ঈ मधुरता उँडेल देता था | वूर से इसकी आवाज़ मोटी, मीठी और लोघ- पूर्ण लगती थी, और उघर से निकलने वाले लोग उन स्वरों से मुग्ध हो कर, स्तन्ध-से खड़े रद्‌ जति थे। कभी-कभी ऐसा भी लगता था, कि जैसे वह कोई बाजा बजा रहा हो। बाजे की भंकार पूर तक फेल जाती थी । जिन्होंने उसे देखा था, वे उसका वर्णन इस प्रकार करते थे--उसका शरीर लम्बा था, और रग गोरा था | उसने दाढ़ी बढ़ा ली थी। उसके काले वालों के बीच उसका मुख खूब गोरा लगता था। वह सिफ गले से नीचे पेरो तक लग्फती एक भूल पहनता था | एक्र दिन उसे सहसा न जाने क्या सूका, कि वह बाहर खेतों की ओर घूमने निकला } ओ व्यक्ति क्रमी भी बाहर न निकलता हो, वह एकदम इस प्रकार दोपहर के समय बाहर निकल पड़े, यह बिना किसी चमत्कार के संभव नही था । चलते-चलते उसने बहुत से सेत पार कर लिप, श्र वीच-जोच मे ढोर घराने वाले लडको से भी बाते की। बेचारे लड़के३,




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