गाँधी जी की साधना | Gandhiji Ki Sadhana

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Gandhiji Ki Sadhana by रामनारायण चौधरी - Ramanarayan Chaudhari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৬ का। (यया पिण्डे तथा ब्रह्याण्डे के न्याय पर ही गावीजी चलते माये ह! अुनकी यह ओक अटल श्रद्धा है कि अपने आसपासकी प्रत्यक्ष परिस्थितिके प्रति हम सत्यनिप्ठासे वफादार रहेंगे, तो विश्वकी सारी समस्याओका ट्ट हमें जहूए मिलेगा। आनकी दूसरी आुतनी ही अठल श्रद्धा यह है कि श्रेप्ठ दोग जैना জানব करेंगे वैसा ही आचरण जितरजनः यानी साधारण जनता भी करेगी। अर्थवास्त्रमे ग्रेगहैमके जिस सिद्धान्तका अल्लेख आता है कि जब सोटा सिक्का चलनमें आ जाता हैं तव खरा सिक्‍का या तो देण- निकाला भोगता है या सुनारकी कुल्हडीमें पिघल जाता हैं। जब जब समाजमें जडता फैलती ह, तव तव॒ यिसी ग्रेनहैमके न्यायने धर्मकी ग्लानि और अवर्मका भम्यत्यान होता है । परन्तु यही सिद्रान्त यदि सार्वभौम होता, तो दुनियाके स्मि কীজী আলা ही नहीं रह जाती। ज्यो ज्यो ममय वीतता আলা स्यो त्यो वुगनक्तिका हासं होता जाता गौर अन्तर्मे दुनियाके भाग्यमे विनाय ही रह्‌ जाता । जवर्माभिभवके विम मिद्रान्तके विरुद्ध यवतार-सजंनका सिद्धान्त काम करता ह! अतमेव दुनियाके जिम कुछ आगा रहती है 1 कुछ लोगोमें धर्म-प्रेरणा गहरी पैठ जाती हैं, कुछ लोगोमें केवल असका प्रति- विम्व॒ ही पडता हैं। जो केवल प्रतिविम्वके ही अविकारी है वे अपने हिस्मेमें आया हुआ या भाग्पमें लिखा हुआ युगकार्य पूरा करके फिर पहले जैसे ही वन जाते हैं। और जो युग-प्रेरणाफ्ों अपना लेते है और जिनमें स्थायी जीवन- परिवर्तन हो जाता हैँ, वे अप्रतिम युगकार्य तो करते ही है, साथ ही अपना स्थायी जुद्टार भी कर छेते ह यह भेद क्यो होता ह? यह्‌ निरा सयोग नहीं हैं। यह कोजओी दैवकी अकल लीछहा नहीं है। यह ओेक अटल सिद्धान्त हैं, आसानीसे समझमें आने लायक है, और अैसा हैं कि आअुर्से समझकर प्रत्येक मनुप्य अुससे छाभ आुठा सकता है। मानव-जीवन साधनाके छिग्रे है, सिद्धिके अुपभोगके लिग्रे नहीं है। जो साधनामे दृढ है अुनकी शक्ति बढती ही जाती है। जो सिद्धिसे ललूचा कर या साधनाके व्यायामसे थक कर शियिल हो जाते हैँ वे नीचे गिर जाते हैं। पुरानी पूजी पर थोडे दिन वे अपनी प्रतिष्ठा कायम रख सकते है, अपने अव पतनकों ओेक ह॒द तक छिपा भी सकते है, परन्तु ठडसे ठिठुरती दुनिया यह जान जाती हैं कि जिन ओटोमें गरमी नहीं रही।




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