आगम - शास्त्र | Agam Shastra

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Agam Shastra by भदन्त आनन्द कौसल्यायन - Bhadant Anand Kausalyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ (१) कि यहु द्विपदो मे वर, किसी “वरोत्तम' को ही नमस्कार हैं, नकि किसी नारायण को । (२) इस कारिका में ज्ञान को आकाशाभिन्न” कहा गया हैं और 'ज्ञेयाभिन्न' भी कहा गया है, जो एकमात्र विज्ञानवादी बौढों की ही दृष्टि है । उक्त दोनों कारणों से यह स्पष्ट हैं कि गौड़पादाचार्य्यने अपना यह नमस्कार भगवान्‌ तथागत को ही निवेदित किया है । इससे आये की दूसरी कारिका भी इस का समथंन करती है-- अस्पशंयोगो वं नाम सवेसत््वसुखोहितः अविवादोऽविरुदधश्च देरितास्तं नमाम्यहं ।।४-२।। [ सभी प्राणियों के लिये सुखदायक तथा हितकर विवाद-रहित, विरोध, रहित, अस्पर्शयोग' नाम के योग का जिन्होंने उपदेश दिया उन तथागत (-बुद्ध ) को मेरा नमस्कार हं | यह “अस्पर्श-योग' निरोध समापति” का ही दूसरा नाम है, जिसके उपदेष्टा दिव-मनुष्योंके शास्ता' बुद्ध ही थे। इस लिये यह पुनः नमस्कार भी उन्हीं कोह) अब हम इस “अलात-शान्ति' प्रकरण में वणित विषय का ही विचार करें। गौड़पादाचार्य्यं ने विषय की भूमिका यह कह कर आरम्भ की है, कोई- कोई वादी कहते हँ कि भूत (=सत) से ही उत्पत्ति होती है, अन्य घीर (- जन) कहते हूँ कि अभूत (- असत) से उत्पत्ति होती है--इस प्रकार वे परस्पर विवाद करते हें। (४/३) ये दोनों सामान्य जनों के सामान्य मत नहीं है। दोनों ही श्रुति- सम्मत मत हैं। इन दोनों से विशिष्ट मत हूँ अद्वय-वादियों अर्थात्‌ बौद्धों का-- भूतं न जायते किञ्चिद्‌ अभूतं नेव जायते । विवदन्तोऽद्रया ह्येवं अर्जति ख्यापयन्ति ते ।४-४।। [ भूत ( = सत) से कुछ उत्पन्न नहीं होता, अभूत ( = असत) से कुछ उत्पन्न नहीं होता, इनके मत का खण्डन कर जो अद्रय-वादी अर्थात्‌ बौद्धहे, वे अजाति ( = अनुत्पति) कौ ही बात कहते ह । ] अद्रय-वाद ओर अद्र॑त-वाद का भेद बहुतों को स्पष्ट नहीं । अद्दय-वाद का मतर्ब हं वह्‌ वाद जिसमें दोनो अन्तो (= सिरं की बातों) अथवा दोनों आत्यन्तिक दुष्टियों का निषेध ह भौर, अद्रैत-वाद का मतख्व हं वह्‌ वाद जिस में दैत का निषेध है ।




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