आगम - शास्त्र | Agam Shastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
72
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२
(१) कि यहु द्विपदो मे वर, किसी “वरोत्तम' को ही नमस्कार हैं,
नकि किसी नारायण को ।
(२) इस कारिका में ज्ञान को आकाशाभिन्न” कहा गया हैं और
'ज्ञेयाभिन्न' भी कहा गया है, जो एकमात्र विज्ञानवादी बौढों की ही दृष्टि है ।
उक्त दोनों कारणों से यह स्पष्ट हैं कि गौड़पादाचार्य्यने अपना यह
नमस्कार भगवान् तथागत को ही निवेदित किया है ।
इससे आये की दूसरी कारिका भी इस का समथंन करती है--
अस्पशंयोगो वं नाम सवेसत््वसुखोहितः
अविवादोऽविरुदधश्च देरितास्तं नमाम्यहं ।।४-२।।
[ सभी प्राणियों के लिये सुखदायक तथा हितकर विवाद-रहित, विरोध,
रहित, अस्पर्शयोग' नाम के योग का जिन्होंने उपदेश दिया उन तथागत (-बुद्ध )
को मेरा नमस्कार हं |
यह “अस्पर्श-योग' निरोध समापति” का ही दूसरा नाम है, जिसके
उपदेष्टा दिव-मनुष्योंके शास्ता' बुद्ध ही थे। इस लिये यह पुनः नमस्कार भी उन्हीं
कोह)
अब हम इस “अलात-शान्ति' प्रकरण में वणित विषय का ही विचार करें।
गौड़पादाचार्य्यं ने विषय की भूमिका यह कह कर आरम्भ की है, कोई-
कोई वादी कहते हँ कि भूत (=सत) से ही उत्पत्ति होती है, अन्य घीर (- जन)
कहते हूँ कि अभूत (- असत) से उत्पत्ति होती है--इस प्रकार वे परस्पर विवाद
करते हें। (४/३) ये दोनों सामान्य जनों के सामान्य मत नहीं है। दोनों ही श्रुति-
सम्मत मत हैं। इन दोनों से विशिष्ट मत हूँ अद्वय-वादियों अर्थात् बौद्धों का--
भूतं न जायते किञ्चिद् अभूतं नेव जायते ।
विवदन्तोऽद्रया ह्येवं अर्जति ख्यापयन्ति ते ।४-४।।
[ भूत ( = सत) से कुछ उत्पन्न नहीं होता, अभूत ( = असत) से कुछ
उत्पन्न नहीं होता, इनके मत का खण्डन कर जो अद्रय-वादी अर्थात् बौद्धहे, वे
अजाति ( = अनुत्पति) कौ ही बात कहते ह । ]
अद्रय-वाद ओर अद्र॑त-वाद का भेद बहुतों को स्पष्ट नहीं । अद्दय-वाद
का मतर्ब हं वह् वाद जिसमें दोनो अन्तो (= सिरं की बातों) अथवा दोनों
आत्यन्तिक दुष्टियों का निषेध ह भौर, अद्रैत-वाद का मतख्व हं वह् वाद जिस में
दैत का निषेध है ।
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