जैन तत्व मीमांसा | Jain Tatva Mimansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आत्म-निवेदन ( प्रथम संस्करण से ) लगभग तीन वषं पूवं जबलपुर अधिवेशनके समय अ० भा० दिऽ जैन विद्वत्परिषदने एक प्रस्ताव पारित कर निक्वय-ग्यवहार भौर निमित्त-उपादान मादि विषयोके सांगोपांग विराद विवेचनको लिए हुए एक निबन्ध लिखे जानेकी आवश्यकता प्रतिपादित की थी। पहले तो मेरा इस ओर विशेष ध्यान नहीं गया था किन्तु इसके कुछ ही दिन बाद जब कलकत्तानिवासी प्रियबन्धु बंशीधरजी शास्त्री, एम० ए० ने मेरा ध्यान इस ओर पुन पुन विशेषरूपसे आकृष्ट किया तब अवश्य ही मुझे इस विषयपर विचार करना पड़ा | प्रस्तुत पुस्तक उसीका ক্ষত ই पुस्तक लिखे जानेके बाद अपना कतंव्य समझकर सर्वप्रथम मैने इसकी सूचना विद्रत्परिषदको दी । फलस्वरूप मेरे ही नगर बीना इटावामें सब विद्वानोकी सम्मति पूव॑क विद्वदुगोष्ठीका जो प्रसिद्ध आयोजन हुआ उसमें समाजके लगभग ४२ विद्वानोने और कत्तिपय प्रमुख त्यागी महानुभावोंने भाग लिया । उनमेसे कुछ प्रमुख त्यागी और विद्वानोके नाम इस प्रकार है--१. श्रद्धेय १० बशोधरजौ न्यायारंकार, २. श्रीमान्‌ ब्र° हुकूमचन्दजी सलावा, २. श्रीमान्‌ प० जगन्मोहनलालजी शास्त्री कटनां, ४ श्रमात्‌ प० केलागचन्द्रजो शास्त्र वाराणसी, ५. श्रीमान्‌ पं० जीवन्धरजी न्यायत्तीथं इन्दौर, ६. श्रीमान्‌ पं० दयाचन्दजी शस्त्री सागर, ७. श्रीमान्‌ प° पन्नालालजौ साहित्याचायं सागर, <. श्रीमान्‌ प्रा खुशहालचन्दजी एम० ए०, साहित्याचायं वाराणसी, ९. श्रीमान्‌ प॑र नाथुलालजी सहितासूरि इन्दौर, ०. श्रीमान्‌ प० लालबहादुरजी एम° ए०, साहित्याचायं दिल्ली, ११. श्रीमान्‌ प° बंशीधरजी व्याकरणाचायं बौना, १२. श्रीमान्‌ पऽ बाख्चन्दजी शास्त्री सोापुर, १३. श्रीमान्‌ डा० राजकुमारजी एम० ए०, साहित्याचायं आगरा, भौर १४ श्रीमान्‌ पं० अभयचन्द्रजी शास्त्रों आयुर्वेदाचार्य विदिशा आदि | विद्वद्गोष्ठीका कार्यक्रम प्रसिद्ध श्रुततिथि श्रुत्ृपचमीसे प्रारम्भ होकर लगभग एक सप्ताहका रखा गया था। उसमे प्रस्तुत पुस्तकके वाचनके साथ विविध विषयोंपर सांगोपांग चरचा होकर अन्तमें विद्वत्परिषदकी




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