बृहत् कल्पसुत्रम भाग 2 | Brihat Kalpa Sutra Part -2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाया ४७२०-७६ ८७७०-८० ८८९०-८४ ८८५०-८९ ६९०-४०५५३ ८९० ८९१ ८९२-९४ ८ ९५-९०६ ९०७ ९०८०-२३ बृहत्कल्पसूत्र द्वितीय विभागनों विपयानुक्रम ! विषय अटवीमां रेख प्रम्बादिना अहणने आश्री दिवस रात्रि, मागे-उन्मागै, उपयुक्त-अयुपयुक्त अने साटम्ब- निराठस्व पदो द्रा १६ भांगाओ अने ते भांगा- ओनो शुद्धाशुद्ध विभाग জন্রনীলা रहेल प्ररृम्वादिना ग्रहणनिमित्ते चतावेछ १६ भांगाओसां यथायोग्य प्रायश्रित्तोलुं निरूपण अठवीमां रहेल प्लूस्वादिना श्रहणद्वारा एकाकी भिक्षुने थती आत्मविराधना-तेने पोताने थतां ठक- शानो अने বনি ভাবা গাঅশ্সিলী अटवीमां रहेल प्रलूम्बादिना ग्रहण निमित्त जनार भिक्षुना सदहायकोना प्रकारो अने तेने छगतां प्रायश्चित्त तत्रप्रलम्बभहणनु स्वरूप নগসতজ্লসভ্তা अर्थात्‌ जे खानमां ताड आवियां वृक्षो दोय यां जने पोत्तानी मेके पडेखां अचित्त प्रलम्बा- दिने ग्रहण करवाने र्गतां प्रायधित्त वगेरेनी भलामण् जे सानमां ताड आदिनां झाडो होय दयां जद सचित्त प्ररुम्वादिना ग्रहणने छूगती प्रतिपादनीय वस्तुनो निर्देश देव, मनुष्य अने तियचनी मालकीबाछा प्रलम्बा- दिनुं खरूप देव, मनुष्य बरेरेए खाधीन करेल पोतानी मेक पडेल अचित्त प्रखम्यादिने तेना खामीनी सम्मति सिवाय छेवाथी भद्र-पान्त-सजन-दुजन मयुप्यादि- हस उभा थता दोपो, ए .गोषोतुं खरूप अने तेने अंगेनां प्रायश्चित्त सचिन्तं प्ररुम्बादिना तेत्रप्रहणने अंगे प्रतिपादनीय विषयनी भलामण अने वधाराना विपयनो निर्देश सचित्त प्रलम्बादिना तत्रग्रहणने छक्षी प्रक्षेपण, आरोहण अने पतननुं तेमज ते द्वारा थती आत्म- संयसादि विषयक विराधनालुं खरूप अने आयश्रित्तो २७९--८० २८००-८९ २८९१-८२ २८२०-८३ २८२३-९२ २८८९२




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