ख़ुशी ख़ुशी -कक्षा 5 भाग 3 | KHUSHI-KHUSHI CLASS 5 - PART 3 - EKLAVYA

KHUSHI-KHUSHI CLASS 5 - PART 3 - EKLAVYA by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaविभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पत्तियाँ ठीनू और आफ़ताब का मन आज कक्षा में नहीं लग रहा था। वें सोच रहे थे कि कुछ नया काम किया जाए। तभी बहनजी नें कहा, 'चलो बाहर से पत्तियाँ लाओ।' टीनू बड़बड़ाने लगी. ओहो, हर साल पत्ती लाओ और छॉटो। कौन-सी गोल, कौन-सी कैंटीली, कौन-सी लम्बी। आफ़ताब ने कहा, “नहीं, आज हम लैंस से पत्ती का अवलोकन करेंगे। देखें, कोई और दूसरी चीजें मिल जाएँ तो बहुत मज़ा आएगा। लैंस की बात सुनकर टीनू ने कहा, शर्त लग गई। देखें कौन पत्तियों में ज्यादा दोनों मिलकर बाहर से ढेर सारी पत्तियोँ ले आए। आफ्त्ताब एक-एक कर सभी पत्तियाँ को लैंस से देखने लगा। तभी टीनू ने कहा, 'लैंस से देखने से पहले देखो कि पत्ती तने से कैसे जुड़ी है| देखो-देखो, यह डंडी जैसा क्या है? इसी से तो पंत्ती तने से जुड़ी रहती है। इसे डंठल कहते हैं।' इतनी बातें बताने के वा बहुत खुश हो गईं और पत्तियाँ टटोलने लगी। आफ़ताब ने कहा, 'पर मेरे इस पौधे की पत्ती में तो डंठल ही नहीं है।' डंठल देखते-देखते ही टीनू चिल्लाई-- 'देखों मेरी इस पत्ती में डंठल तो पत्ती के अन्दर तक है और नॉंक तक 'पहुँचते -पहुँचते पतला होता जा रहा है।' आफ़ताब एक लैंस लेकर आ गया। चलो लैंस से पत्ती को देखते हैं। दोनों बहुत ध्यान से लैंस में से पत्ती देखने लगे। 'देखो-देखो डंठल से




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