ईश्वरीय बोध | Ishwariya Bodh

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Ishwariya Bodh by केदारनाथ गुप्त - Kedarnath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( श४् ) 9३.. लय मनुष्य बाजार से दूर रहता है तो उसे “होहो” की आवाज़ श्वरपष्ट रूप से सुनाई पड़ती है किन्तु जब वहद बाज़ार में आजाता है तो हो हो की ध्रावाज बन्द हो जाती है शरीर वह अपनी आँखों से साफ साफ़ देखता हैं कि कौन थरादूमी श्रालू_ खरीद रहा है और कौन बेंगन खरीद रहा है श्रीर कौन दूसरी चीजें खरीद रहा है | उसी प्रकार जय तक मनुष्य ईश्वर से दूर रहता है तब तक वह तर्क कुतेक, बाद- विवाद श्रादि चातों से पड़ा रहता है; किन्तु जब वह ईश्वर के समीप पहुँच जाता है तो तक॑ कुतक श्रौर बाद-विवाद सब बन्द हो जाते हैं श्ौर वह ईश्वरीय गुदा वातों को उत्तम प्रकार स्पष्ट रूप से समता है। १४. ईसा मसीह को जब सूली दी गई उस ससय उसको घोर वेदना हो रही थी तव भी उसने मरार्थना की कि उसके शन्न॒ यहूढ़ी क्षमा किये जायें । इसका कया कारण है? जब एक साधारण कच्चे नारियल में कीला ठॉका जाता है तो वह भीतर की गरी में भी घुस जाता है लेकिच जब्र चढ़ी कीला एक पुराने पके हुये नारियल में डॉका जाता हैं तो गरी में नहीं घुसता क्योंकि पके हुये नारियल का गोला खोपड़ी से ्रलग दो जाता है। यीसू मसीदद पक्के हुये नारियल की तरह थे । उनकी ्रन्तरात्सा शरीर से विलग थी इसीलिये शारीरिक चेदना उन्हें नहीं मालूम हुई 1 कीलें उसके शरीर में आरपार ठोक दी गई थीं तब भी चह शान्ति के साथ श्रपने शत्रु्ों की भलाई के लिये ध्रार्थना कर रहा था । १४. घर की छुत पर मनुष्य 'सीढ़ी, बाँस, रस्सी आदि कई साधनों के योग से चढ़ सकता है। उसी श्रकार ईश्वर तक पहुँचने' के लिये भी झनेकों मार्ग और साधन हैं । संसार का अत्येक धर्म इन मारे में से एक सारे के प्रदर्शित करता है । १६. एक माँ के कई लड़के होते हैं। एक को वह जेवर देती है, दूसरे के खिलौने देती है और तीसरे को मिठाई देती है सबः अपनी-




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