ब्रज की लोक कहानियाँ | Braj Ki Lok Kahanaya

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Braj Ki Lok Kahanaya by डॉ. सत्येन्द्र - Dr. Satyendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ ः ब्रज की लोक कहानियाँ सो वु छोरा दिन-दिन वड़ो दोइ । सो स्थानों है गयो तो वु कु पे न्हाइवे जायो करे रो । सो एक दिनाँ नारद जी महीं हक जाइ रहें । सो भगवान जी न तो वे पहचान लिये पर उनपे . न पहुँचने । सो भगवान बोले के ओ गैलहारे पानी पीजा । सो ये वोले मोइ प्यास नाँइ । भगवान बोले । के तोइ थोरी-सी ढर चलिक प्यास लगेगी । तो नारद बोले के मोइ प्यास नाँय । सो वाइ थोरी सी दूर चलिके खूब जोर ते प्यास लगी । तो फिर नारद भगवान के पास आए और बोले के अब प्याय दे । तो फिर भगवान बोले कि अब यों प्यादं । जब हमनें कही जब दो नाँय पीयों । सो बोले नाँय अब प्याइ दे | तौ चाइ पानी प्याइ दियो | सो भगवान बोले के रोटी और खाइजा । तौ वे बोले मोइ भँक नॉँय । तो भगवान बोले तोइ नेक ढर चल्िके भँक लगेगी | तोन माने । सो भगवान की करनी ऐसी भई वाये थोरी दर चलिकें तत जोर ते भूख-लगी । सो वे बगदे श्र कही ला अब रोटी खबवाइ दे | तो भगवान बोले जब हमनें कही जब तौ खाई ना अब का रोटी धरी हैं । तो वे वोले के जब मोइ भूक नाई । ता भगवान न सूरज के तेह 1 ते रोटी करीं सो नारदजी बोले तुम तो मगवान से लगे । वान कही तोइ का खबर । तो वे बोले के ठुमन सूरज के तेह ते रोटी करीं । सो भगवान बोले तू मोप दगरे में देखि गयो ओ मैं बुई हूँ जो स्होँ में उंगरिया दैकें रोइ रहो । तो भगवान बिनकं वामन क लेकें अपने पहले गाँव के करे गये सो वे भगवान विन की जाति-बिरादरी से बोले के मैं भगवान . हो | तुम इनकू जाति में मिलाओ । सो वे जाति में मिलाइ लिये । नारद आर मगवान अपने देवलोक क गये | सं० क० सम्मनलाल अग्रवाल बिलौटी । िलिविदकललददवपदयाायलललरइलरडलदरयडदालयनककििकादकललयदाद साल एदददमनया कद ददलयाावधदयाथदक 8७ वहीं २ ले. ३ प्याइदें थे नांई श््षं ६्ऊँ १ गरमी




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