सड़क पर | Sadak Par

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Sadak Par by श्री पहाड़ी - Sri Pahadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विश्ञाम १३ धका विसार चुकी है। इसके लिए उसने किसी की आज्ञा नहीं ज्ञी। स्वयं अपने विचारों में बह गई। पिछली धारणाओं के प्रति आविश्वास बना लिया। मुरली शीला को देख कर ठीक-ठीक पहचान नहीं सकता दै] मामी साढ़ियाँ और जम्पर के कपड़े देख रही थी | शीला सारी बातें एक पक्की नारी की तरह बता रही थी | वह बहुतः सरल ओर बचपन की तरह भोली लगी। बह शौला के चरित्र की व्याख्या, एक पुरुष की हैसियत से कर रहा था | | भाभी बोल बैटी, “हमारी शीला बहुत सुन्दर गाती है |” वह शीला गाती है | मुरली भली-भाँति जानता है। अब क्‍या उत्तर दे कि शीला ने उबार लिया। सारी चीजें नौकरानी को सौंप कर भीतर चली गईं | मुरली अपने मन के भीतर कुछ कुरेद्रता रह गया ) असमझस यं सा वद एकाएक उट वरैर | का, श्रवतो श्राप यहाँ हैं। किर आऊँगा |”? “कल जरूर आइयेगा | हमें सिनेमां जाना है |? । “लेकिन कल सेरा एक काम है |” रूट न जाने क्थ मुरली बोल बैठा | वह खुद अपनी यह बात नहीं समझ सका | सम्भवतः शीला के प्रति बाले विश्वास में, वह अपने को अपराधी स्वीकार करना नहीं चाहता था। भाभी ने बह बात कठोर सत्य की तरह स्वीकार करते हुये कहा, शीज्ञा के साथ चली जाऊंगी।” | शीला फे साथ भाभी सिनेमा जायेगी। उस शीला पर वह टिंक जाता है| वह शीला सुन्दर गाती है| किसी से गाढ़ा प्रेम भी उसकाः है | बस, वह उस पर कोई राय नहीं देगा। भाभी है, शीला है ओर उसके बाद हनियाँ बहत पैली हुई है। जहाँ वह सवदा छानबीन करता रहेगा । लेकिन नूतन और नवीन व्यवहार अभौी-अर्भी उस्ने भाभी से पाया है। वह किस अधिकार से शीला को बरबस बीच में खींचा, उसकी त्याख्या कने कौ ठल. जाता दै |




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