हिमालय की वेदी पर | Himalay Ki Vedi Par
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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प्र विचार करते रहने के अतिरिक्त और कोई बात ही नहीं समती थी !
उनके मन में भी कई वार कोई सा कार्य करने की बात झाई थी
कि जिससे वह देश के रक्षा-कार्यों में उपयोगी दन सझे, परन्त दया करतीं,
रक्षा-केन्द्र की बात सनकर उन्हें दिदा-इ््चनन मिला । वह राजरानी से
बोलीं, “राज ! कभी-कभी में घण्टों सोचतो रहती हूँ कि तम्हारे भव्या
भारत माता की रक्षा के लिए जझात्र की गोलियों के समक्षसीना ताने खड़े
और मैं राष्ट्र के इस महान् यज्ञ में किसी भी प्रकार की कोई आहति
नहा द पा रहा ।
मुर्भे तुम्हारी बहिनजी का कार्य बहुत पसन्द आया । आज इस
संकट-काल में उन्होंने जिस ठोस कार्य -क्रम की रूप रेखा प्रस्तुत की है
वह सचमुच ही बहुत महत्वपूर्ण हैं ।
क्या तुम अपनी बहिनजी से मेरी भेंट करा सकोगी २
राजरानी मुस्कराकर बोली, “बहिनजी से मैं श्रापकी चच कर
चुकी हूँ और उन्हे यह भी बता चुकी हूँ कि आप दुदाई-कढ्ाई के कार्यों
में कितनी दक्ष
सचमुच भाभीजी ! यदि 'महिला-रक्षा-केन्द्र को आपका संरक्षण
प्राप्त होजाए तो केन्द्र का कार्य बहुत क्षीत्र बहुत उन्नति कर सक्तादै 1
বি
“तो फिर कब चलोगी सुभद्वादेवी के पास ?
प्राप अ्रभी चलें। केन्द्र का कार्य सात बे से प्रारम्भ हाता
है। इस समय बहिनजी केन्द्र में ही होंगी। आपने भेंट करके बहिनऊी
को हार्दिक प्रसन्नता होगी । आपका वहां बहुत सन लगेगा। हमार
विद्यालय की वहां बहुत-सी छात्रा आती हैं और नगर की भी ऋहत-
सी स्त्रियाँ आती हैं। यहाँ अकेली रहने का में देख रही हैं आपके
स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है ।'`
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