मानव धर्म | Manav Dharm
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
175
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मानव-धम- १२
देसे प्रासुक, गर्म या उवे इए पानीको उसकी म्यादके भीतर काममे
ले लेना चाहिये।
जिस पानीमें शंका हो कि यह गन्दा है, उस पानीको छानकर
फ़िर उबालकर और फिर छान करके ठंडा करके पीना उचित है। इससे
रोगोंकी उत्पत्ति नहीं होगी। हमें बाछक बालिकाओंको ऐसा ही शुद्ध
छना इञा पानी पीनेकों देना चाहिये | बहुतसे रोग पानी पीनेकी मूछसे
हो जाया करते हैं। पानीकी सावधानी इस जीवनके लिये बहुत आव-
सयक है। जो छोग बिना विचारे चाहे जहाँका पानी बिना छाने पी
ल्या करते है, वे बहुधा पानके भीतर पाए जानेवाले कीटाणुओंके
शिकार बनते हैं और अपनेको रोगी बना छेते हैं ।
४-भोजन ।
द शी स्थिरताके लिये भोजन वही करना उचित है जो निरोगी
तथा बल्प्रद हो और जिसकी प्राप्तिमं हिंसा, जहाँ तक हो न की
गई हो अथवा बहुत अल्प की गई हो । इस छोकमें जैसे हवा और पानी
स्वभावसे ही मानवोके ग्रहण करने योग्य हैं, वैसे ही स्वभावसे दक्ष -जातिसे
जो धान्य, फल था मेवा पैदा होते है, वे मानवके खाद्य हैं। मानवोंका
आहार मांस या मद्य नहीं है ।. भोजनके लिये भी हमें नाक और जबा-
नसे प्रछना चाहिये | जो पदार्थ अपनी असली दशामें नाकको सुगंधित
और जबानको स्वादिष्ट लगें, वे ही ग्रहण करने योग्य हैं । कच्चा मांस
ओऔर शराब दुर्गधयुक्त होते हैं। नाक इन्हें कभी मंजूर नहीं कर
सकती । जिसे नाकने कबूल नहीं किया, उसे ज़बान कभी स्वीकार
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