दुर्गादास | Durga Das

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Durga Das by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्य । ] पहला अंक । पथ औरंगनेव तो मेरे हाथकी पुतली--मेरी उंगढीके इशारे पर ना- चनेवाठे है | पर लोग कुछ और ही समझते हैं । यह लोगोंकी हद- दर्जकी वेवकूफी है । नहीं तो इस जसवन्तसिंहकी रानी और बच्चे- की थौरंगजेबको क्या जरूरत थी * कोई अपने दिलसे एक दफा यह सवाल भी नहीं करता । [ ओरगजेबका प्रवेश । ] गुल्नार--कौन | बादशाह सलामत *---बन्दगी जहाँपनाह ! औरग०--गुलनार ! तुम यहें अकेली * रानीकी राह देख रही थी।-कर्ीं हे वह १ औरग०--अभीतक पकड़ी नहीं जा सकी । गुलनार--अभीतक पकड़ी नहीं जा सकी १ औरग०--नहीं !--दुर्गादास उसे देनेके छिए राजी न होकर दखारसे लौट गया | गुछनार--जिन्दा ठौट गया ८ औरग०--हाँ ।--उसके साथ फौज थी । आपके यहीं क्या फौज न थी !--बड़ी दार्मकी वात है! औरग०---प्यारी-- गुछ्तार--मैं कोई बात सुनना नहीं चाहती जहॉपनाह ! मैं आज ही शामके पहले जोधपुरकी रानीकों चाहती हूँ । औरग०--गुल्नार! मैंने रानीका घर घेरनेके छिए दिटेरखेंको भेजा है । [--दामके पहले मै उसे चाहती हूँ। याद रहे। प्रस्थान । 0),




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