जो देश के लिए जिए | Jo Desh Ke Liye Jiye

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Jo Desh Ke Liye Jiye by शंकर सहाय सक्सेना - Shankar Sahay Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पंद्ञोगाथा सारिवयलाल वर्मा £ नम ध्द सर्वे प्रथम समाप्त किया श्र उनके मुख्य मत्रित्व काल के श्रल्य समय ( ग्यारह महांनो ) मे । ही उन्होंने पूर्व राजस्थान में जागीरदारी उन्सुलन अधिनियम बनाकर सामत प्रथा दी श्रस्तेष्ठि कर दी । विभिन्‍न राज्यो को भिलाकर बननेवाले पुर्वे राजस्थान की प्रशासकीय ससस्याए कित्तनी जटिल रही होगी उसकी कल्पना राज नहीं की जा सकती । परन्तु अपने अल्प शासन काल मे ही उन्होने जागीरदारी प्रथा को समाप्त कर देने का क्ातिकारी कदम उठाया । जन्स वर्मा जी का जन्म विजोल्या में अपने पतूृक गृह मे मागें शीष नुवल एवादजी दनि- वार को रेवती नक्षत्र प्रथम चरण सम्वत १६४४ तदवुसार ४ दिसम्बर १८९७ ईसवी को हुमा । वर्मा जी को अपने पिता श्री छगनलाल माथुर का झभिभावकत्व भी प्राप्त नही हुमा । उनके जन्म के सवा साल परचात्‌ पिता श्री छगनलाल जी का स्वगंवास हो गया । वर्मा जी की दो बड़ी बहिने श्र एक बडे भाई श्री मोतीलाल थे । वर्मा जी की दो बडी वहिनें सुश्री नारायन बाई तथा ग्यारसी वाई उनसे तथा वड़े भाई सोतीलाल से बड़ी थी । परन्तु वे भी श्रायु में बहुत छोटे थे । श्रतएव उनका लालन पालन उनकी मातिश्वरी की टी देख रेख से हुझ्ना । यद्यपि वर्मा जी की साता कोई थिक्षित महिला नही थी परन्तु वे अत्यन्त साहसी, घारमिक, ममतामयी, हृढ स्वभाव वाली, परिश्रमी, स्वाभिमानी श्रीर तेजस्वी महिला थी । यह गुण वर्मा जी ने श्रपनी ममतामयी मा से उत्तराधिकार मे प्राप्त किए थे । शद्यपि पत्ति के श्रकस्मात स्वगंवासी हो जाने से परिवार पर घोर घिपत्ति का पहाड़ टठ पड़ा, छोटे बच्चों के लालन पालन की समस्या उनके सामने थी परन्तु उन्होंने छाहस श्रौर हृढता से पति के दायित्व को भी अपने कथघो पर ले लिया श्रौर बच्चो का लालन पालन किया 1 शिक्षा दीक्षा क्रम. वर्मा जी छ सात वर्ष के हुए । श्रव यह समस्पा उपस्थित हुई की उनकी शिक्षा की क्या व्यवस्था हो । विजोल्वा मे उस समय कोई स्कूल या पाठशाला तो थी नहीं जिसमे बालक माणिक्य लाल को प्रवेश दिलाया जा सकता । यदि पिता जीवित होते तो वे स्वय श्रपने पुत्र को शिक्षित बना सकते थे । कायस्थ जाति में श्रत्यन्त प्राधथीन काल से वालको को श्रनिवायं रूप मे शिक्षा देने की परम्परा रही है। कायस्थ कुल में जन्म लेकर बालक भ्रशिक्षित रहे इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता । कायस्थ परिवार से थदि कोई बालक पढने में तनिक भी उदासीनता प्रदशित करता था तो उसको श्रपने पिता माता बड़ो से वहुघा युनने को मिलता था “कायस्थ वच्चा पढा भला या मरा भला” श्ररत बालक माणिक्यलाल की शिक्षा का प्रइन जटिल वन गया । परिवार की श्राधिक रिथति भी ऐसी नहीं थी कि उनको दवू दी अथवा उदयपुर भेजकर पढाया जाता । अतएव स्थानीय पडित से ही उन्होंने थिक्षा प्राप्त की । ठिकाने में जागीरदार सस्कृत पडित को अपनी सेवा मे रखते थे । अतएुव बालक माणिक्यलाल की शिक्षा दीक्षा विजोल्या मे ही हुई । इसका परिणाम _ यह हुध्रा कि उन्हे श्रत्य विषयों का तो श्रव्ययन करने का भ्वसर नहीं मिला परन्तु हिन्दी भौर सस्कृत भाषा का उन्हें ज्ञान हो गया । द्विन्दी श्र सस्कृत उन्दोने पढ़ी थी पर लेखक




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