प्रगतिशील हिंदी कविता | Pragatisheel Hindi Kavita
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.02 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पूर्व-पीडिका : परिवेश एवं परिस्पिठियाँ (९
पूँजीवादी युग मे विज्ञान के क्षेत्र में मी आश्वयंजनक उन्नति हुई । विज्ञान
ने भौतिक दृष्टि से तो मनुष्य को समुद्ध बनाया ही, मनुष्य-मश्तिष्क को भी
अधिक संतुलित एव सजग बनाया और उठे भविप्य के स्वरूप-चिस्तन की
एक नवीन दृष्टि प्रदान की । विज्ञान से स्वस्थ प्रभाव के परिणामस्वरूप मनुष्य कते
दृष्टिकोण अधिक बुद्धिवादी हुआ बोर परम्परागत रूढ़ियों के प्रति उसका अन्ध
विश्वास समाप्त हो गया । अब बह हर घारणा को बुद्धि की राजू पर तौलने के
बाद ही अपनाने लगा । इस विज्ञान से प्रभावित होकर मनुष्य परम्परायत धामिक
विधि-विधानी के श्रति भी शंकाशील हो उठा । स्वयं घर्म भी अधिक व्यापक रूप
ग्रहण करने लगा आर मनुष्य सकी्ण सम्प्रदायगत सीमाओं को लॉपकर एक दर्वात्म-
दादी सानवन्धमं की ओर विशेष रूप से आदकुष्ट होने लगा । आगे चलकर इस
बैज्ञातिक दुष्टि ने हो अधिक विकसित होकर मानव को ससार की भौतिक व्यारुदा
करने तथा बदलने के लिए भी प्रेरित किया।'ईस वैज्ञानिक दृष्टि की सबसे
बड़ी देन तो यह है कि उसने किसी अदृष्ट शक्ति के सम्मुख तुच्छ बने हुए मानव
ने गौरव-मुल्य की पुन: प्रतिष्ठा की और उसे सुप्टि का सर्वोत्तम सत्य स्वीकार
कया ।
(सा) प्रूजोवाद के गति अवरोधक तत्व :-उक्त ऋन्तिकारी तत्वों के साथ ही
[ौवादी समाज-व्यवस्था ने पमशः यतिजवरोधक तत्वों ही भी सुप्टि की । पूँजीवाद
। विकास दा वैज्ञानिक अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि औद्योगिक विकास
हि चरम परिक्ाति और स्वतन्त्र बाजार तथा उन्मुक्त प्रतिपोगिता की नीति के
परिणामस्वरूप हो पूँजो भमश: बम से बम हांवों में संचित होठी चली गई, निम्न
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