हिंदी नाटक कोश | Hindi Natak Kosh
श्रेणी : नाटक/ Drama, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.29 MB
कुल पष्ठ :
663
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका / १५
किया गया है । दृश्य के लिए जहाँ पर जो शब्द मिला हमने उसी का प्रयोग उचित
समझा । पाठकों को उन शब्दों से दुश्य का ही अर्थ समझना चाहिए। कही-दही पदों
का प्रयोग अक के लिए भी दिया गया है ।
रगमच-नि्देशर बी सुविधा के लिए घटनास्थलो का संकेत कर दिया गया है ।
इसका उद्देश्य यह है कि निर्देशक नाटक का चयन करते समय दुश्य विधान के लिए
मपनी व्यवस्था बना मनेक दृश्यों में जहाँ एक ही प्ररार का दुश्य-विधान मिठा
चहाँ उसवी बार-बार पुनरावृत्ति नहीं की गई है । कारण यह है कि निर्देशक को वार-
बार वैसे दृश्य विधान के लिए नई व्यवस्था नहीं करनी होती । अत उनकी पुनरा-
यृत्ति अनादश्यक' समझी गई 1
कयानक से पूर्व नाटक का कथ्य इस उद्देश्य से दिया गया है ताकि अभिनय
के लिए नाटक का चयन करते समय चयनकर्ता को अपनों आवश्यकता के अनुसार
सुविधा हो जाए । यदि कोई सामाजिक नाटक खेलना चाहता है तो उसे कथ्य की दो-
चार पत्तियों से ही नाटक की मूल प्रवृत्ति का ज्ञान हो जाएगा । हास्य व्यग्प का
नाटक खेलना हो तो उसे गम्मीर ऐतिहासिक या पौराणिक नाटकों की कथावस्तु से
उल्सना न पड़ेगा । कथ्य से नाट्य प्रकार और नाट्योदेश्य का शीघ्र ही बोध हो जाएगा
और चपनकर्ता अनावश्यक श्रम से बच जाएगा ।
कथावस्तु का सक्षिप्त विवरण इस कोश वी भपनी विशेषता है। बथावस्तु
का विस्तार निर्णय करने में हमने कतिपय सिद्धान्तो को अपनाया । पहला सिद्धात्त
यह था कि अति प्राचीन एवं अनुपलब्ध नाटकों को क्यावस्तु इतने विस्तार के साथ
दे दी जाए कि उनका पूरा चिन्न पाठक की दृष्टि के सामने शा जाएं। अत क्या
की प्रत्येक घटना का विवरण अकानुसार देने का प्रयास किया गया । इस
पाठक को मुलक्या सहज हो समझ में दा जाएगी । क्थावस्तु के विस्तार से नाटक
की महत्ता का अनुमान लगाना उचित न होगा । प्राचीन और थति प्राचीन नाटक आज
की दृष्टि से महृत्वपूण भले ही न हो कितु उनका ऐतिहासिक महत्व अवश्य है।
इसीलिए उनको विस्तृत रूप मे देर शेप नाटकों की क्या सक्षिप्त रूप में दे दी गई ।
इसका यह भर्थे नहीं है कि जिस नाटक की क्या विस्तार से दी गई है वह मधिक
महत्त्वमय है मौर जिसे सक्षेप मे लिखा गया वह मदरव-रहित है। शिव-पावंती की कथा
के आधार पर अनेक नाटक लिखे गए हैं जिनमे सबसे पुराना हेर-गौरी-विवाहू नाटक
सबत् १६८० के आस-पास का मिला । यह राजा जगज्ज्योतिमल्ल के राज्यकाल की
रचना है और इसे राजदरवार में खेछा गया । इस कोश मे उसवी कथा विस्तार से दी गई
है। जिन नाटकों में व था परिवतन का सकेत मिला उनवी कथावर्तु को भी बुछ विस्तार
के साथ लिखा गया। सभव है कि क्थावस्तु मे एकरूपता वा मभाव कट्टी-कह्दी पाठकों
के मन मे खटके । हमारा उद्देश्य कथावरतु के विवरण मे एकरूपता छाना है भी नहीं और
यह सभव भी नही था । साढे छ सौ दर्पों मे विरचित दो सदर से नाटक, नाट्य-
देवता की विस्तृत यात्रा के पद चिह्न मात्र हैं । हमारा उद्देश्य उस लम्बी यात्रा पर
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